देव प्रबोधिनी एकादशी से शुभ और मांगलिक कार्य शुरू होते है : आचार्य डॉ. मिश्रा

ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी
कुरुक्षेत्र : श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश ज्योतिष आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को हरि प्रबोधिनी एकादशी और देव उत्थानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ महीने के शुक्लपक्ष की देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु सो जाते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी एकादशी को क्षीरसागर में चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। भगवान के जागने से सृष्टि में सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। शुभ मांगलिक कार्य जैसे गृह प्रवेश ,विवाह ,मुंडन का प्रारम्भ भी इसी दिन से होता है I देवउठनी एकादशी पर गन्ने का मंडप सजाकर उसमें भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी पूजा करने और तुलसी विवाह का भी विधान है। विशेष भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, गंध, चंदन, फल और अर्घ्य आदि अर्पित करते है I श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली, कुरुक्षेत्र के संरक्षक व पुजारी पंडित राहुल मिश्रा वैदिक मंत्रों से रविवार को तुलसी विवाह और पूजा अर्चना देव प्रबोधिनी एकादशी के उपलक्ष्य में रविवार, 2 नवंबर 2025 को श्रद्धा और भक्ति से भक्तों द्वारा करवायेगें।
तुलसी-शालिग्राम विवाह की विशेष तिथि :
इस पर्व पर वैष्णव मंदिरों में तुलसी- शालिग्राम का विवाह किया जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार इस पुण्य कर्म से यश कीर्ति , सुख और समृद्धि बढ़ती है। देव प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह से अक्षय पुण्य मिलता है ।
कन्यादान का पुण्य :
जिन घरों में कन्या नहीं है और वे कन्यादान का पुण्य पाना चाहते हैं तो वह तुलसी विवाह कर के प्राप्त कर सकते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सुबह तुलसी का दर्शन करने से अक्षय पुण्य फल मिलता है। साथ ही इस दिन सूर्यास्त से पहले तुलसी का पौधा दान करने से भी महा पुण्य मिलता है।
 
				 
					 
					


