नाम जप का होता है विलक्षण प्रभाव : महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती।
सेंट्रल डेस्क संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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वृन्दावन : रतनछत्री क्षेत्र स्थित गीता विज्ञान कुटीर में अपनी धार्मिक यात्रा पर आए प्रख्यात वेदान्त उपदेशक, श्रीमद्भगवदगीता के प्रकांड विद्वान, वयोवृद्ध संत महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज (हरिद्वार)
ने भक्तों-श्रृद्धालुओं को उपदेश देते हुए कहा कि ओंकार ही परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति के लिए सब प्रकार के आलंबनों में से सबसे श्रेष्ठ और सुगम आलंबन है।इससे परे और कोई आलंबन नहीं है। अर्थात् परमात्मा के श्रेष्ठ नाम की शरण हो जाना ही उनकी प्राप्ति का सर्वोत्तम एवं अमोघ साधन है। इस रहस्य को समझ कर जो साधक श्रद्धा व प्रेम पूर्वक इस पर निर्भर करता है, वो नि:संदेह परमात्मा की प्राप्ति का परम लाभ प्राप्त करता है। नाम रहित होने पर भी परमात्मा अनेक नाम से पुकारे जाते हैं। उनके सब नामों में “ॐ” सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अतः नाम और नामी अभेद हैं।भागवत गीता में भगवान कहते हैं – “यज्ञानां जपयज्ञोस्मि” अर्थात सब प्रकार के यज्ञों में जप यज्ञ मैं ही हूं। इस प्रकार श्रुति और स्मृति रूप भगवत वचनों से यह सिद्ध होता है, कि नाम और नामी में कोई भेद नहीं है।
पूज्य महाराजश्री ने कहा कि परम कल्याण के दो ही साधन हैं -“पुकार” और “विचार”। पुकार हरिनाम की शरणागति है और विचार से परम ज्ञान की प्राप्ति से मोक्ष होता है। दोनों ही दिव्य साधन हैं। नाम जप तो श्रेष्ठ से भी परम श्रेष्ठ है।यह सब साधनों से विलक्षण है।दो तरह के साधन है – “करण सापेक्ष” और “करण निरपेक्ष”। क्रिया और पदार्थ से करण सापेक्ष साधनाएं होती हैं। जैसे यज्ञ, दान, तप, तीरथ, व्रत आदि।परंतु भगवान का नाम जप क्रिया नहीं है। पुकार में अपने कर्म का, अपने बल का व अपनी शक्ति का अभिमान नहीं होता।संत सूरदास जी का वचन है -“अपबल तपबल और बाहुबल, चौथा बल है दान। सूर किशोर कृपा से सब बल हरे को हरिनाम”। अर्थात – हरिनाम में जिस परमात्मा को पुकारा जाता है, उसका भरोसा होता है। पुकार में अपनी साधना या क्रिया कर्म मुख्य नहीं है। अपितु भगवान से अपनेपन का संबंध मुख्य है। इस अपनेपन में भगवत संबंध की जो शक्ति है, वह यज्ञ, दान एवं तब आदि क्रियाओं में नहीं है। अतः नाम जप का विलक्षण प्रभाव होता है।
इस अवसर पर प्रमुख समाजसेवी पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, चित्रकार द्वारिका आनंद, डॉ. राधाकांत शर्मा, स्वामी लोकेशानंद महाराज, हरिकेश ब्रह्मचारी, पण्डित मुनीराम योगी, श्यामवीर, उदय नारायण कुलश्रेष्ठ आदि की उपस्थिति विशेष रही।