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जेल में बंद कैदियों की समस्याओं को देखते हुए हुई चर्चा*
जेल में बंद कैदियों को सजा से बड़ी सजा मिल रही है। जब उनके सामने कच्ची और सूखी रोटियां आतीं हैं तो कैदी मन मसोस कर खाते हैं। इस पीड़ा को कहें तो किससे कहें आखिर सवाल जो पापी पेट का।
भीषण गर्मी का आलम यह है कि लोग घरों से बाहर निकलना नहीं चाहते हैं। ऐसे में जेल प्रशासन कैदियों की भारी-भरकम संख्या को देखते समय से पहले भोजन बनवाना शुरू कर देता है। सुबह छह बजे के करीब भोजन बनना शुरू हो जाता है। दोपहर में 12 बजे के करीब कैदियों के सामने भोजन की थाली परोसी जाती है। आलम यह है कि इनमें कुछ रोटियां बेतरतीब जली तो कुछ इतने कच्चे जो दांत में चिपक जाते हैं। सुबह की ये रोटियां जब थाल में पहुंचती हैं तो सूख जातीं हैं। जिनसे बूढ़े इसे खा भी नहीं पाते हैं। यही हाल शाम के भोजन का भी है। सूत्रों ने बताया कि कैदियों की संख्या अधिक होने के कारण आटे को पूरी तरह से गूंथा नहीं जाता है। जिला जेल से छूटे कैदी मलखान सिंह बताते हैं कि रोटी का निचला हिस्सा जला तो ऊपरी हिस्सा कच्चा ही रहता है। दाल से पानी का मेल नहीं होता है। रोटी बनने के छह घंटे के बाद वह कैदियों की थाली में आता है। पेशी पर आए 2 कैदियों में नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि रोटी सूखी होने के कारण उसे खा भी नहीं पाते हैं। एक दशक से जेल में बंद हैं, लेकिन रोटी में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला। वहीं जेल में बंद कैदी रामबाबू का कहना है कि जेल का खाना गरीबों के लिए कष्टदायी है। अमीर कैदी तो सिपाहियों से मिलकर गर्म रोटियां बनवा लेते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जेल में करीब पांच कुंटल आटा प्रतिदिन लगता है। मानक यह है कि काम करने वाले कैदियाें को 3.50 ग्राम आटा और बिना काम करने वालों को 2.70 ग्राम प्रति के हिसाब से मिलना चाहिए, लेकिन चार सूखी रोटियां ही उन्हें नसीब होतीं हैं। इसके बाद भी जेल प्रशासन अपनी झूठी तारीफ करने में लगा रहता है