उतराखंड: चंपावत के बाद भी प्रदेश में उपचुनाव,

देहरादून: 22 साल के उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता लगातार रही है प्रचंड बहुमत की सरकार के बावजूद तीन बार मुख्यमंत्री बदले गए इसके अलावा उत्तराखंड में अलग-अलग कारणों से उपचुनाव भी होते रहे हैं।

राजनीति के जानकारों और उसी उधेड़बुन में बड़ी संख्या मे लगे लोगों का कहना है कि चंपावत उपचुनाव के बाद उत्तराखंड में और भी उपचुनाव की संभावना प्रबल है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए चंपावत उप चुनाव जीतना बेहद जरूरी है ।यदि वे 31 मई को होने वाले उपचुनाव में नहीं जीत पाए तो मुख्यमंत्री की कुर्सी से उनकी विदाई तय है.. अगर ऐसा होता है तो झारखंड के बाद उत्तराखंड दूसरा उदाहरण होगा जब शिबू सोरेन इसी प्रकार अपनी कुर्सी बचाने के लिए मैदान में उतरे थे लेकिन उन्हें पीटर नाम के एक अनजाने शख्स से 9000 वोटों से चुनाव हारना पड़ा।

उत्तराखंड के भाग्य में राज्य गठन की अस्थिरता की रेखाएं बहुत गहरी लिखी हुई है ऐसे में प्रचंड बहुमत की सरकार में कोई और उपचुनाव नहीं होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है।
उत्तराखंड में राज्य गठन से लेकर अब तक विधानसभाओं की स्थिति देखें तो एक दर्जन उप चुनाव हो चुके हैं।
ऐसा नहीं कि सिर्फ मुख्यमंत्रियों के लिए सीट खाली हुई हो और तब ही उपचुनाव हुए हो उत्तराखंड में पहली निर्वाचित सरकार में पहला उपचुनाव रामनगर सीट पर करवाया गया था जहां योगंबर सिंह रावत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण तिवारी के लिए सीट छोड़ी थी इसके बाद दूसरी विधानसभा में धुमाकोट सीट पर टीपीएस रावत ने जनरल खंडूरी के लिए सीट छोड़ी थी तब उपचुनाव हुआ था उसके बाद कपकोट से भगत सिंह कोश्यारी के इस्तीफे के बाद शेर सिंह गढ़िया कपकोट से निर्वाचित हुए और मुन्ना सिंह चौहान के विकास नगर से इस्तीफे के बाद कुलदीप कुमार वहां से विधायक निर्वाचित हुए।

तीसरी विधानसभा में सुरेंद्र राकेश की मौत के बाद भगवानपुर से उनकी पत्नी ममता राकेश चुनकर आई डोईवाला से रमेश पोखरियाल निशंक के इस्तीफे के बाद वहां कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट जीत कर आये।

धारचूला से हरीश धामी के इस्तीफे के बाद हरीश रावत चुनकर आए और इन सबसे पहले सितारगंज से किरण मंडल के इस्तीफे के बाद विजय बहुगुणा चुनकर आए।
चौथी विधानसभा में सल्ट विधानसभा क्षेत्र में सुरेंद्र सिंह जीना की मौत के बाद उनके भाई महेश जीना जीतकर आये पिथौरागढ़ से प्रकाश पंत की मौत के बाद उनकी पत्नी चंद्रा पंत जीत कर आई
थराली में मगनलाल शाह की मौत के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी शाह जीतकर आई।

2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब अरविंद पांडे के सम्मुख चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के जनक राज शर्मा की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई तो उसके कुछ समय बाद चुनाव पोस्ट पाउंड हो गया था बाद में जनक राज शर्मा की पत्नी को चुनाव लड़ाया गया लेकिन अरविंद पांडे की ही जीत हुई।

जिस प्रकार से उत्तराखंड में विधानसभाओं सीटों को लेकर बार-बार विभिन्न कारणों से उपचुनाव होने के प्रकार होते आ रहे हैं। उससे उत्तराखंड के नक्शे पर अगले कुछ समय में एक और उपचुनाव हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए उत्तराखंड के राजनीतिक पंडितों और ज्योतिष विदों का कहना है कि चंपावत के बाद भी उत्तराखंड में उपचुनाव की 99.9 9 प्रतिशत संभावना है देखना है कि आने वाले वक्त में वह कौन सी सीट होती है जिस पर उपचुनाव होगा।

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साग़र मलिक उतराखंड प्रभारी(वी वी न्यूज़)

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