गुरुपूर्णिमा सनमार्ग एवं सतमार्ग पर ले जाने वाले महापुरूषों के पूजन का पर्व है : डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

गुरुपूर्णिमा सनमार्ग एवं सतमार्ग पर ले जाने वाले महापुरूषों के पूजन का पर्व है : डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर लोकमंगल के निमित्त सुंदरकांड एवं हनुमान चालीसा का पाठ संपन्न।

कुरुक्षेत्र 3 जुलाई : गुरु को हमारे समाज की महत्वपूर्ण संस्था माना जाता है। वे शिष्य के जीवन में प्रभावी प्रेरणा स्रोत हैं और उन्हें ज्ञान और संस्कार देते हैं। गुरु अपने शिष्यों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उन्हें नई सोच और दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। एक अच्छे गुरु का महत्वपूर्ण कार्य होता है बाल विकास, शिक्षा के माध्यम से समाज के साथियों का निर्माण करना और राष्ट्रीय निर्माण में मदद करना। गुरु के दिए संस्कार शिष्य को आगे बढ़ने में मददगार साबित होते हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने गुरुपूर्णिमा के अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ दीपप्रज्जवलन से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व उपलक्ष्य में लोकमंगल के निमित्त सुंदरकांड एवं हनुमान चालीसा का पाठ किया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है, यह अध्यात्म-जगत का महत्वपूर्ण उत्सव है, इसे अध्यात्म जगत की बड़ी घटना के रूप में जाना जाता है। पर्वों, त्यौहारों और संस्कारों की भारतभूमि में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है। पश्चिमी देशों में गुरु का कोई महत्व नहीं है, वहां विज्ञान और विज्ञापन का महत्व है परन्तु भारत में सदियों से गुरु का महत्व रहा है। यहां की माटी एवं जनजीवन में गुरु को ईश्वरतुल्य माना गया है, क्योंकि गुरु न हो तो ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग कौन दिखायेगा? गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और वे ही जीवन को ऊर्जामय बनाते हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा गुरु पूर्णिमा गुरु-पूजन का पर्व है। सन्मार्ग एवं सत-मार्ग पर ले जाने वाले महापुरुषों के पूजन का पर्व, जिन्होंने अपने त्याग, तपस्या, ज्ञान एवं साधना से न केवल व्यक्ति को बल्कि समाज, देश और दुनिया को भवसागर से पार उतारने की राह प्रदान की है। जीवन विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। गुरु की सन्निधि, प्रवचन, आशीर्वाद और अनुग्रह जिसे भी भाग्य से मिल जाए उसका तो जीवन कृतार्थता से भर उठता है। क्योंकि गुरु बिना न आत्म-दर्शन होता और न परमात्म-दर्शन। गुरु भवसागर पार पाने में नाविक का दायित्व निभाते हैं। वे हितचिंतक, मार्गदर्शक, विकास प्रेरक एवं विघ्नविनाशक होते हैं। उनका जीवन शिष्य के लिये आदर्श बनता है। उनकी सीख जीवन का उद्देश्य बनती है।
कार्यक्रम का समापन सर्वमंगल प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के सदस्य, विद्यार्थी एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।

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