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समलैंगिक विवाह न केवल धर्म व नीति विरुद्ध, बल्कि प्रकृति विरुद्ध भी है : ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी।समलैंगिक विवाह न केवल धर्म व नीति विरुद्ध, बल्कि प्रकृति विरुद्ध भी है : ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा विवाह संस्कार के संशोधन में जल्दबाजी की जरूरत नहीं।
कुरुक्षेत्र, 29 अप्रैल : देशभर में संचालित श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने समलैंगिक विवाह प्रक्रिया पर कहा कि विवाह संस्कार के संशोधन में जल्दबाजी की जरूरत नहीं है बल्कि गहन विचार किए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट को भारत के साधु-संतों से भी परामर्श लेना चाहिए।
ब्रह्मचारी ने कहा कि वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में समलैंगिक विवाह पर चल रही सुनवाई पर पूरा देश अपनी दृष्टि केन्द्रित किए बैठा है। भारत संस्कृत, संस्कृति और ऋषियों का देश रहा है। कुछ चंद लोगों की पाश्चात्य विचारधारा के सम्मोहन से संस्कृति के साथ छेड़-छाड़ करना ठीक नहीं है।
ब्रह्मचारी ने कहा कि भारतीय हिन्दू सनातन संस्कृति में संस्कारों की महती महिमा है। संस्कार भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। हमारा जीवन संस्कारों से ओतप्रोत है तथा सम्पूर्ण जीवन इस पर आधारित है। प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में संस्कारों की संख्या भिन्न है। परन्तु कुछ प्रमुख संस्कार प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में विद्यमान हैं, उन समस्त संस्कारों की श्रृंखला में विवाह संस्कार का भी एक विशिष्ट स्थान है। विवाह संस्कार विषयक वर्णन प्रायः सभी धर्म ग्रन्थों में विद्यमान है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह न केवल धर्म व नीति विरुद्ध, बल्कि प्रकृति विरुद्ध भी है।
श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी।