महाभारत कालीन काम्यकेश्वर तीर्थ का पांच दशकों में देवेंद्र स्वरूप ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के प्रयासों से हुआ भव्य विकास : के.के. कौशिक

महाभारत कालीन काम्यकेश्वर तीर्थ का पांच दशकों में देवेंद्र स्वरूप ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के प्रयासों से हुआ भव्य विकास : के.के. कौशिक।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191977

काम्यकेश्वर तीर्थ की ऐतिहासिक तीर्थ के रूप में बनी विशेष पहचान।

कुरुक्षेत्र, 2 जुलाई : भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से उत्पन्न पावन गीता की जन्मस्थली, तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के गांव कमौदा में स्थित पौराणिक एवं ऐतिहासिक काम्यकेश्वर तीर्थ आज श्रद्धालुओं की विशेष आस्था का केंद्र है।
श्री जयराम विद्यापीठ के ट्रस्टी के.के. कौशिक एडवोकेट ने बताया कि महाभारत कालीन काम्यकेश्वर तीर्थ का पांच दशकों में विकास विद्यापीठ एवं श्री जयराम संस्थाओं के संस्थापक ब्रह्मलीन देवेंद्र स्वरूप ब्रह्मचारी एवं उनके परम शिष्य ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के प्रयासों से हुआ है। आज इस तीर्थ पर दूर दूर से श्रद्धालु पूजन एवं स्नान के लिए आने को ललायित होते हैं। कौशिक ने बताया कि करीब 5 दशक पूर्व देवेंद्र स्वरूप ब्रह्मचारी ने तीर्थ की व्यवस्था संभाली तथा इस तीर्थ के महत्व को देखते हुए शुक्ला सप्तमी मेले एवं पूजन की शुरुआत की। तब से लगातार मेले में भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
कौशिक ने बताया कि देवेंद्र स्वरूप ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के प्रयासों से तीर्थ में भव्य गौशाला का जहां विकास हुआ वहीं मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य स्वरूप प्रदान किया गया। जयराम विद्यापीठ द्वारा गुरु परम्परा के अनुसार शुक्ला सप्तमी मेले पर विशाल भंडारे भी आयोजित किए जाते हैं। देशभर में संचालित श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी द्वारा भी गुरु परंपरा को निभाते हुए काम्यकेश्वर तीर्थ का निरंतर विकास किया जा रहा है।
कौशिक ने बताया कि तीर्थ पर कमरों के निर्माण के साथ सरोवर को भी भव्य एवं सुंदर स्वरूप प्रदान किया गया। उन्होंने बताया कि इस तीर्थ के महाभारत युद्ध के साक्षी होने के साथ साथ यहां पर भगवान श्री कृष्ण के साथ पांडवों का भी राज्य खोने के बाद आगमन हुआ, इसी जगह पर द्रौपदी के पुत्रों का नामकरण हुआ। कौशिक ने बताया कि महर्षि पुलस्त्य जी और महर्षि लोमहर्षण जी ने वामन पुराण में काम्यक वन तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए बताया कि इस तीर्थ की उत्पत्ति महाभारत काल से पूर्व की है।
काम्यकेश्वर तीर्थ एवं सरोवर, सरोवर में स्न्नान करते हुए श्रद्धालु, ब्रह्मलीन देवेंद्र स्वरूप ब्रह्मचारी एवं परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचरी।

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