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हमारी बाल पीढ़ी ही हमारी संस्कृति, संस्कार एवं शिक्षा के संवाहक होते हैं : डा. श्रीप्रकाश मिश्र

हमारी बाल पीढ़ी ही हमारी संस्कृति, संस्कार एवं शिक्षा के संवाहक होते हैं : डा. श्रीप्रकाश मिश्र

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा बाल अभिमन्यु छत्रावास के विद्यार्थियों के लिए एक दिवसीय ग्रीष्मकालीन बाल चरित्र निर्माण शिविर मे बाल पीढ़ी के समग्र विकास में संस्कार, संस्कृति एवं शिक्षा का महत्व विषय पर बाल संवाद कार्यक्रम आयोजित।

कुरुक्षेत्र 26 जून : भारत देश की सभ्यता और संस्कृति जितनी प्राचीन है उतनी ही समृद्ध भी है। यदि हम वैदिक काल को देखें तो हर व्यक्ति का मूल उद्देश्य में राष्ट्रहित निहित था। शिक्षा का मूल उद्देश्य केवल धनोपार्जन या आजीविका नहीं था बल्कि अच्छे नागरिक तैयार करना था। शिक्षा मूल्यों पर आधारित थी। किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति के वाहक वहां का साहित्य, रीति रिवाज, ग्रंथ, स्मारक, ऐतिहासिक धरोहरें, शिक्षा और धार्मिक केंद्र एवं वहां के लोग होते हैं। हमारी बाल पीढ़ी ही हमारी संस्कृति, संस्कार एवं शिक्षा के संवाहक होते हैं। यह विचार मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा बाल अभिमन्यु छत्रावास के विद्यार्थियों के लिए आयोजित एक दिवसीय ग्रीष्मकालीन बाल चरित्र निर्माण शिविर मे बाल पीढ़ी के समग्र विकास में संस्कार, संस्कृति एवं शिक्षा का महत्व विषय पर आयोजित बाल संवाद कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। बाल संवाद कार्यक्रम
का शुभारम्भ विद्यार्थियों द्वारा माँ सरस्वती से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने एक दिवसीय ग्रीष्मकालीन बाल चरित्र निर्माण शिविर में संभाषण, चित्रकला एवं गीता श्लोकोच्चारण कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुतियां दी एवं विभिन्न साँंस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
बाल संवाद कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा समाज के बदलाव के लिए व्यक्ति में अच्छे गुणों की आवश्यकता होती है और उसकी नींव हमें हमारे बच्चों की बाल्यावस्था में ही रखनी पड़ती है। बच्चों को तीन गुण आत्मसात करवाने की आवश्यकता है। ज्ञान, कर्म और श्रद्धा। बाल पीढ़ी के सर्वांगीण विकास में संस्कार, संस्कृति और शिक्षा का बहुत महत्व है। ये तीनों तत्व मिलकर बच्चों के व्यक्तित्व, चरित्र और सामाजिक जीवन को आकार देते हैं। बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करना शिक्षा का आवश्यक अंग है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा संस्कार, बच्चों के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संस्कार, बच्चों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने और सफलता प्राप्त करने में मदद करते हैं। संस्कृति, बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ती है और उन्हें अपनी पहचान समझने में मदद करती है।यह उन्हें अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं, और मूल्यों को समझने और उनका सम्मान करने में मदद करती है।सांस्कृतिक जागरूकता, बच्चों को एक समावेशी और सहिष्णु समाज बनाने में मदद करती है। आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली में छात्रों को संस्कार दिए जाना लगभग नगण्य होता जा रहा है। यह एक चिंता का विषय होना चाहिए।आज के बदलते परिवेश में बच्चों की शिक्षा के साथ संस्कार देने की जरूरत है। कार्यक्रम के अतिविशिष्ट अतिथि समाजसेवी प्रदीप सैनी ने मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों को उपहार स्वरूप खेल सामग्री भेंट की। कार्यक्रम का संचालन सुरेंद्र सिंह ने किया। आभार ज्ञापन विजय सैनी ने किया। कार्यक्रम में तुषार, सुश्री शगुन, आयान, दिक्षु आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ।

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