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फिरोजपुर 24 मार्च {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के द्वारा होली पर्व के उपलक्ष में सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया।जिसमें संस्थान के संचालक एवं संस्थापक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी वंदना भारती जी ने कहां की कई शताब्दियों से हम होली का पर्व मनाते आ रहे हैं। अनेका अनेक रंगो के द्वारा इस त्यौहार को मनाया जाता है आज हम इसके यथार्थ मर्म को जानने का प्रयास करते हैं। उन्होंने उन्होंने होली के शाब्दिक अर्थ को समझाते हुए बताया कि होली माने हो+ली कहने का भाव जो हो गया सो हो गया। इस लिए पुराने जख्मों को कुरेदने से क्या फायदा बल्कि इससे तो नुकसान ही होगा। घाव नासूर बन जाएगा। गड़े मुर्दे उखाड़ेगे तो दुर्गंध ही फैलेंगी कुछ हासिल नहीं होने वाला। किसी ने बहुत सुंदर कहा है “जो बीत गई सो बीत गई,तकदीर का शिकवा कौन करें, जो तीर कमान से छूट गया ,उस तीर का पीछा कौन करें”।इसीलिए भूल जाइए अपनी पुरानी लड़ाई झगड़ों को धो डालिए मन के मलाल को रंगों की फुहारों से यह होली का संदेश है। साध्वी जी ने बताया कि होली का एक आध्यात्मिक अर्थ भी है होली अर्थात “हो गई”। कौन किसका हो गया? उन्होंने कहा कि महापुरुषों के अनुसार यहां आत्मा और परमात्मा की बात है। आत्मा कहती है कि मैं परमात्मा की हो गई।पर ऐसा कब हो पाता है। जब जीवन में एक पूर्ण सतगुरु आते हैं क्योंकि गुरु ही आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार करवाते हैं। परमात्मा के प्रकाश स्वरूप को देख लेने के बाद ही उसके प्रति प्रेम हो पाता है, भक्ति का आरंभ होता है। इसीलिए ही कहा गया है कि वास्तविक होली तो भक्त और भगवान के बीच में ही खेली जाती है। सद्गुरु के मिलने के बाद शिष्य खेला करते हैं। इस लिए हम भी प्रभु के चरणों में प्रार्थना करें हे प्रभु अब हमें अपने मजीठ रंग में रंग ले भक्ति का हम पर ऐसा रंग चढ़ा दे जो कभी ना उतरे।
इस अवसर ने सुन्दर भजनों का गायन कर संगत को भावविभोर कर दिया।