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टीबी हारेगा, देश जीतेगा: अमावा में एम्स और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त मुहिम

रायबरेली
रिपोर्टर विपिन राजपूत

टीबी हारेगा, देश जीतेगा: अमावा में एम्स और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त मुहिम

रायबरेली, 3 जुलाई।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी रायबरेली डॉ. नवीन चंद्रा के निर्देशन और जिला क्षय रोग अधिकारी की निगरानी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अमावा के अधीक्षक डॉ. रोहित कटियार की देखरेख में टीबी उन्मूलन के लिए एक प्रभावशाली जनजागरूकता व सर्वेक्षण अभियान चलाया गया। इस अभियान का संचालन एम्स रायबरेली और टीबी यूनिट अमावा की संयुक्त टीम द्वारा किया गया, जिसने “टीबी को हराना है, देश को जिताना है” के संकल्प को गांव-गांव पहुंचाया।

इस विशेष अभियान का नेतृत्व एम्स रायबरेली की मुख्य शोधकर्ता डॉ. हिमांशी शर्मा ने किया। उनके साथ इंटर्न डॉ. आदर्श पांडेय और डॉ. अभिनव कटारिया ने सक्रिय भागीदारी निभाई। टीम ने घर-घर जाकर न केवल टीबी के लक्षणों और इलाज के बारे में जानकारी दी, बल्कि टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (TPT) की उपयोगिता को भी समझाया—जो संक्रमण को प्रारंभिक स्तर पर ही रोकने का एक प्रभावी उपाय है।

अभियान के केंद्र में रहे टीबी यूनिट अमावा के प्रभारी करुणा शंकर मिश्रा, जिनकी कार्यशैली, समर्पण और प्रभावशाली संवाद क्षमता ने ग्रामीण जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया:

“टीबी पूरी तरह से इलाज योग्य बीमारी है और इसका इलाज सरकार द्वारा निःशुल्क उपलब्ध है। इलाज शुरू होते ही रोगियों को ₹1000 प्रति माह पोषण सहायता भी दी जाती है। दो हफ्ते से अधिक खांसी, बुखार, वजन कम होना या भूख न लगना—ये लक्षण नजर आते ही जांच कराना आवश्यक है।”

मिश्रा ने “निक्षय मित्र” बनने का आवाहन करते हुए लोगों से टीबी रोगियों को न्यूट्रिशन किट, फल या अन्य सहायता प्रदान करने की अपील की। उनका यह मानवीय और प्रेरणादायक संदेश ग्रामीणों के दिल को छू गया।

कार्यक्रम में कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर मिथिलेश तथा आशा कार्यकर्ता विमलेश, सावित्री और शांति मौर्य ने उल्लेखनीय योगदान दिया। नुक्कड़ नाटक, चौपाल संवाद और जीवंत नारों—
👉 “दवा पूरी, टीबी दूरी”
👉 “हर मरीज तक पहुंच—हमारी ज़िम्मेदारी”
👉 “टीबी को हराना है, देश को जिताना है”
—के जरिए जागरूकता का प्रभावशाली संचार किया गया।

टीबी यूनिट प्रभारी करुणा शंकर मिश्रा की नेतृत्व क्षमता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सेवा-भावना ने यह सिद्ध कर दिया कि जब प्रशासनिक दिशा, चिकित्सा संस्थानों की विशेषज्ञता और सामुदायिक भागीदारी एक साथ आती है, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं रहता।

स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि ऐसे ठोस और समर्पित प्रयास ही “टीबी मुक्त भारत” के सपने को जल्द साकार करेंगे।

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