तीन पीढ़ियों के अंतर को एक साथ दिखा गया नाटक बाबू जी ठीक कहते थे

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
बेटे को बड़ी देर में समझ आया ‘‘बाबूजी ठीक कहते थे’’
साहित्य समाज का दर्पण होता है : मदन मोहन छाबड़ा।
कुरुक्षेत्र 6 अप्र्रैल : कहो तो स्टांप पेपर पर लिखकर दे दूँ, यह घर बरबाद होकर रहेगा, कोई रोक नहीं सकता। ज़िंदा हूँ इसीलिए देख-देखकर कुढ़ता रहता हूँ। इससे अच्छा था, मर जाता। या फिर भगवान आँखों की रोशनी छीन लेते। न अपनी आँख से देखता, न अफ़सोस होता। घर में किसी को कुछ कहदो तो खाने को दौड़ते हैं। मेरी परवाह ही किसको है। इस तरह के संवादों के साथ नाटक बाबू जी ठीक कहते थे ने तीन पीढ़ियों के अंतर को एक साथ दिखाने का प्रयास किया। मौका था हरियाणा कला परिषद द्वारा कला कीर्ति भवन में हिंदी रंगमंच दिवस के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय नाट्य समारोह के समापन का। दो दिवसीय नाट्य समारोह में पहले दिन अभिनय रंगमंच हिसार द्वारा नाटक कोर्ट मार्शल का मंचन किया गया, वहीं दूसरे दिन मेघदूत थियेटर ग्रुप भिवानी के कलाकारों ने कौशल भारद्वाज के निर्देशन में कामतानाथ की कहानी संक्रमण पर आधारित बाबूजी ठीक कहते थे का खूबसूरत मंचन किया। इस अवसर पर 48 कोस तीर्थ निगरानी कमेटी के अध्यक्ष मदन मोहन छाबड़ा मुख्यअतिथि के रुप में पहुंचे। वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो0 दिनेश दधिचि ने की। मंच संचालन विकास शर्मा ने किया। कार्यक्रम से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेंद्र शर्मा ने अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया। भिवानी के कलाकारों ने नाटक बाबू जी ठीक कहते थे के माध्यम से दर्शकों को उनके घरों की कहानी याद दिलाई। जहां प्रत्येक परिवार में बुजुर्ग हर एक छोटी से छोटी चीज का ख्याल रखते हैं और अपने बच्चों को लापरवाहियों के लिए टोकते हैं। नाटक में भी बाबू जी ऐसे ही स्वभाव के व्यक्ति थे। जो अपने बेटे और बहू की लापरवाहियों से परेशान थे। घर की चीजों का ख्याल न रखना, कूलर, पंखा, लाइट, टीवी बिना किसी कारण के चलाए रखना। घर के खाने की बजाए बाहर का खाने पर आश्रित रहना बाबूजी के घर की आम समस्याएं थी। बाबू जी अक्सर अपने बेटे पिंटू को पैसे की कीमत और घर की कीमत के बारे में बताते रहते। लेकिन इस बात का असर पिंटू पर नहीं होता। वह यही सोचते कि उनके बाबू जी सठिया गए हैं और आए दिन किसी न किसी बात पर टोकते रहते हैं। लेकिन पिंटू जब खुद पिता बनता है और उसका बेटा ठीक उसके जैसा ही बर्ताव करना शुरू कर देता है तो पिंटू को एहसास होता है कि उसके बाबू जी ठीक कहते थे। लेकिन जब तक उसे एहसास होता है बाबू जी दुनिया को अलविदा कह चुके होते हैं। इस प्रकार बुजुर्गों की अनदेखी करने वाले परिवारों पर करारा कटाक्ष कर गया नाटक बाबूजी ठीक कहते थे। नाटक इतना दमदार रहा कि दर्शक नाटक के हर संवाद को अपने से सम्बंधित मान रहे थे। हास्य-व्यंग्य तथा गम्भीरता से परिपूर्ण नाटक ने एक पल के लिए दर्शकों का ध्यान नाटक से हटने नहीं दिया। नाटक में पिता की भूमिका अनिल कुमार ने निभाई, वहीं बेटे पिंटू की भूमिका में श्याम वशिष्ठ रहे। मां का किरदार पूजा बजाज, नौकर सूरज, पोता मधुर वशिष्ठ रहे। अन्य सहयोगियों में यश केजरीवाल, रितिका तथा योगमाया रही। नाटक के अंत में मुख्यअतिथि मदन मोहन छाबड़ा ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है। नाटकों के माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को सीख लेनी चाहिए। आधुनिकता के रंग में डूबकर युवा वर्ग अपने बुजुर्गों को अनदेखा कर देता है लेकिन जब वे स्वयं बुजुर्ग होंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और केवल पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहेगा। कलाकारों के अभिनय की तारीफ करते हुए मदन मोहन छाबड़ा ने नाटक की खुले दिल से प्रशंसा की। अंत में सभी कलाकारों तथा अतिथियों को हरियाणा कला परिषद की ओर से सम्मानित किया गया।