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असली योगी वही है,जो सदा साक्षी है : समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया

असली योगी वही है,जो सदा साक्षी है : समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुरुक्षेत्र : श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश और समर्थगुरु मैत्री संघ हिमाचल के जोनल कोऑर्डिनेटर डॉ. मिश्रा ने बताया कि नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान होता है। अष्टमी नवरात्रि में माँ महागौरी रूप में पूजा होती है। माँ महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। विशेष पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
नवमी नवरात्रि में माँ सिद्धिदात्री रूप में पूजा होती है। सिद्धिदात्री माँ केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। विशेष पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
अष्टमी को गुलाबी और नवमी को बैंगनी रंग के वस्त्र पूजा में पहन सकते है। घर के मुख्य द्वार पर रंगोली भी नौ दिन इन रंगो से बना सकते है। माँ दुर्गा आपकी श्रद्धा और भावना को देखती है और उसके अनुसार ही श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। कंजकों का पूजन और प्रसाद वितरण भक्ति भावना से भक्तों ने मन्दिर के प्रांगण में किया।
रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है।
भगवान श्रीराम ने माँ दुर्गा की आराधना कर महाविद्वान रावण का वध किया था और समाज को यह संदेश दिया था कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। केवल चरित्रवान ही पूजा जाता है। नारी की जहाँ भी पूजा होती है,नारी का जहाँ भी सम्मान होता है वही सुख समृद्धि होती है और दैवी कृपा होती है।
पण्डित राहुल मिश्रा ने वैदिक मन्त्रों से मुख्य यजमान सुमित्रा पाहवा और राम कमल पाहवा के सपरिवार से पूजा -अर्चना करवाई।
भक्तों ने माँ को लाल रंग की चुन्नियाँ, नारियल, श्रृंगार का सामान और प्रसाद श्रद्धा भाव से अर्पण किया I
समस्त विश्व कल्याण हेतु माँ दुर्गा का संकीर्तन व श्री दुर्गा चालीसा का पाठ और सुंदर भेंटे सुरेन्द्र कौर , ऊषा शर्मा, आशा कवात्रा,सरोज शर्मा , शिमला धीमान पायल सैनी, कोमल मेहरा,निशा अरोड़ा और सभी भक्तों ने गाई।
मां दुर्गा की आरती के पश्चात् भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया।
ट्विटर के माध्यम से समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया ने बताया कि तुम जो भी करते हो, साक्षी होकर करो, आत्म स्मरण के साथ करो। फिर तुम्हारा हर कृत्य यज्ञ बन जाता है। और यदि साक्षी होकर सुमिरन करो, तो फिर क्या कहना! तुम्हारा सुमिरन महायज्ञ बन जाता है। असली योगी वही है, जो सदा साक्षी है।

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