ब्रह्म रूपी लक्ष्य को प्राप्त करने का आत्मिक अनुशासन ही साधना है:- स्वामी विज्ञानानन्द जी

नवरात्रों के उपलक्ष्य में संस्थान के तत्वाधान में ब्रह्मज्ञानी साधकों ने सामूहिक साधना व प्रार्थना की।
(पंजाब)फिरोज़पुर,29 सितंबर 2025 [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]=
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा शक्ति आराधना का पर्व नवरात्रों के उपलक्ष्य में व विश्व शांति की मंगल कामना के उद्देश्य से अपने भारत नगर स्थित स्थानीय आश्रम में दिव्य ध्यान एवं विलक्षण योग शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान की ओर से श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विज्ञानानन्द जी ने बताया कि जीवन एक यात्रा है जो कि असत्य से सत्य की, अंधकार से प्रकाश की, मृत्यु से अमृतत्व की, अज्ञानता से ज्ञान की और अग्रसर होने का शंखनाद है। परंतु विडम्बना का विषय है कि इसके विपरीत आज विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य अपनी इस यात्रा को भूल कर शांति की खोज में इधर उधर भटक तो रहा है। परंतु शांति की प्राप्ति न कर पाने के कारण वो पहले से भी अपेक्षाकृत और अधिक धनलोलुप होता चला जा रहा है। फलतः अशांति, अवसाद, अज्ञानता, अन्याय, अभाव, शोषण व अनैतिक मानव मूल्यों से ग्रसित मानव समाज पतन की खाई में गिरता चला जा रहा है।
स्वामी जी ने बताया की अज्ञानता, असत्य, अन्याय मानव मन का स्वभाव है। जो को मनुष्य को अन्धकार की ओर ले जाते हैं। अंधकार के साम्राज्य में मनुष्य को कभी भी समाधान नहीं मिल सकता। अंतः करण के अन्धकार के साम्राज्य में और ज्ञान के प्रकाश के अभाव में मनुष्य अशांति से युक्त है। आवश्यकता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी के कथनानुसार गुरु बिन भव निधि तरई न कोई पूर्ण गुरुदेव की कृपा से ब्रह्मज्ञान के प्रकाश में अंतः करण से प्रकाशित होकर आत्मिक एवं मानसिक शांति की प्राप्ति की जाये। इस सनातन क्रिया से युक्त हो जब एक साधक अपने गुरुदेव की आज्ञा में चलते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ता है तो उसकी साधना स्व कल्याण से पर कल्याण अथवा आत्म जाग्रति से विश्व शांति की उड़ान भरती है। यही साधना का मूल और जीवन की जाग्रति है। क्योंकि ब्रह्म रूपी लक्ष्य को प्राप्त करने का आत्मिक अनुशासन ही साधना है
कार्यक्रम में साध्वी करमाली भारती व सुनीता भारती ने वैदिक मंत्रोच्चारण कर विश्व शांति की मंगल प्रार्थना की।
साधकों ने सामूहिक साधना कर आत्मिक शांति व दिव्य अनुभूतियों को प्राप्त किया।