तुलसी जयंती महोत्सव – 2025 ,रामचरितमानस पाठ से गूंजे मंदिर, संस्कृति विभाग द्वारा दो दिवसीय आयोजन

आधुनिक वाल्मीकि संत तुलसी दास की 528वीं जयंती पर उन्हें, उनकी रचनाओं और मंत्रों से किया नमन
दीपक शर्मा (जिला संवाददाता)
बरेली : अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान, व संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के तत्वावधान में तुलसी जयंती महोत्सव – 2025 के अंतर्गत प्रदेश के 75 जनपदों में प्रमुख मंदिरों में दो दिवसीय संपूर्ण रामचरितमानस पाठ का भव्य आयोजन किया गया।कार्यक्रम में अमित मिश्रा व उनकी धर्मपत्नी मुख्य जजमान रहे। अखंड रामायण पाठ का संयोजन कवि रोहित राकेश ने किया। तथा यह आयोजन श्रद्धा और भक्ति के वातावरण में बड़ा बाग हनुमान मंदिर में 30-31 जुलाई को सम्पन्न किया गया।आयोजन में बड़ी संख्या में भक्तों, विद्वानों और रामकथा प्रेमियों की उपस्थिति ने पूरे परिसर को भक्तिमय बना दिया। 30 जुलाई से 31 जुलाई तक निरंतर 24 घंटे अखंड रामायण का पाठ हुआ । 30 जुलाई प्रथम दिन महानगर प्रचारक मयंक साधु डॉ हिमांशु अग्रवाल,विक्रम अग्रवाल,हरिओम गौतम,उमेश गुप्ता, रोहित राकेश ,पुरन मौर्य दूसरे दिन संदीप अग्रवाल मिंटू ,अंकुर सक्सेना डॉ रुचिन अग्रवाल,सुबोध अग्रवाल,ने अखंड रामायण का पाठ किया। अखंड रामायण पाठ मेंअशोक गोयल पंकज अग्रवाल डॉ अजय पाल गुरविंदर सिंह सुरेंद्र लाला आलोक अग्रवाल, मोहन चंद्र गुप्ता आदि की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम संयोजक रोहित राकेश ने बताया इस कार्यक्रम का उद्देश्य गोस्वामी तुलसीदास जी के साहित्यिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक योगदान को जन-जन तक पहुंचाना है। श्रीरामचरितमानस जैसे महाग्रंथ का सामूहिक पाठ एक ओर जहाँ लोकमानस को रामभक्ति से जोड़ता है, वहीं हमारी सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों को भी पुनः जागृत करता है।
अनिल सक्सेना एडवोकेट ने बताया ।
विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, गीतावली , कृष्णगीतावली , जानकीमंगल , रामलला नहछू तथा रामचरित मानस जैसे महान ग्रन्थों के रचयिता श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ।
जिन्होंने गांव – गांव में रामलीला करने की प्रेरणा दी | उनके प्रभाव को देख कर अकबर ने नवरत्नों में से एक स्थान का प्रस्ताव भेजा, जिसे आप ने हिन्दू धर्म के रक्षार्थ यह कहते हुए ठुकरा दिया |
“हम चाकर रघुबीर के, पटयो लिखो दरबार।”*
‘‘तुलसी अब का होइहे नर के मनसबदार।‘‘
साहित्य सदन के मुख्य अनुराग अग्रवाल ने बताया कि यह आयोजन केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का संदेश भी दे रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन समाज में भारतीय जीवन मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा में सहायक सिद्ध होंगे।