उपनयन संस्कार परंपरा भारतीय संस्कृति का व्यापक चिंतन पूरे विश्व के लिए अनूठी देन है : वैद्य हरिशंकर शर्मा।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र : श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दीक्षारंभ कार्यशाला के दूसरे दिन का उद्घाटन मुख्य अतिथि पूर्व में गुजरात, जामनगर आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति रहे वैद्य हरिशंकर शर्मा द्वारा भगवान धन्वंतरि के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया। उन्होंने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत देश में शिष्य उपनयन संस्कार परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। जिसका अर्थ है गुरु शिष्य का परस्पर नजदीक आना। गुरु अपने शिष्य को संस्कार और अक्षर दोनों का ज्ञान देता है, जो मानवता के कल्याण का आधार बनता है। यह भारतीय संस्कृति का व्यापक चिंतन पूरे विश्व के लिए अनूठी देन है। उन्होंने कहा कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति को जीवन पर्यन्त एक विद्यार्थी की भूमिका में रहना चाहिए। इसके साथ ही मन को संयम में रखते हुए जीवन में कठोर नियमों का पालन करें और जैसे सुई में धागा पिरोते वक्त एकाग्र होना पड़ता है उसी तरह विद्यार्थी को लगन के साथ पढ़ाई करनी चाहिए, तभी वह कामयाब होता है। वहीं कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि गुरु का स्थान देवता से भी ऊंचा होता है। जो शिष्य के दोषों को दूर कर अन्धकार से प्रकाश का मार्ग दिखाता है। इसलिए अगर जीवन में आगे बढ़ना है, तो गुरु का सम्मान अवश्य करें। इसके साथ ही गुरु भी समय-समय पर अपने शिष्यों की परीक्षा लेता रहता है और जो परीक्षा पर खरा उतरता है, उसे ही अपना शिष्य स्वीकार करता है। इस अवसर पर कार्यशाला के संयोजक डॉ. अनिल शर्मा, सदस्य डॉ. कृष्ण कुमार और डॉ. मनीषा खत्री उपस्थित रही।