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भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर के पशुजन स्वास्थ्य विभाग द्वारा विश्व जूनोसिस दिवस का हुआ आयोजन
दीपक शर्मा (संवाददाता)
बरेली : भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर के पशुजन स्वास्थ्य विभाग द्वारा आज विश्व ज़ूनोसिस (प्राणिरूजा रोग) दिवस का आयोजन किया गया जिसका उद्देेश्य प्राणिरूजा रोगों (ज़ूनोसिस) के महत्व एवं इनसे बचाव के बारे में जनता में जागरूकता पैदा करना है। इस बार विश्व प्राणीरूजा रोग की थीम एक विश्व, एक स्वास्थ्य तथा प्राणिरूजा रोग को रोकें हैं। इस अवसर पर देश भर से प्रशिक्षण पर आये छात्रों ने विभिनन प्राणिरूजा रोगों के बारे में उपस्थित लोगों को जागरूक किया। इस अवसर पर विजयी प्रतिभागयिों को प्रमाण-पत्र भी वितरित किये गये।
विश्व ज़ूनोसिस (प्राणिरूजा रोग) दिवस हर साल 6 जुलाई को प्रसिद्व फ्रांसीसी रसायनज्ञ और वैज्ञानिक लुई पाश्चर द्वारा पहला सफल रैबीज टीकाकरण करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पाश्चर द्वारा पहले सफल रैबीज टीके की खोज स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। वर्ष 1885 के इसी दिन अपने द्वारा बनाए गए सफल टीके को देकर पाश्चर ने एक पागल कुत्ते द्वारा बुरी तरह से काटे गए 9 साल के लड़के-जोसेफ मीस्टर की जान रेेबीज नामक जानलेवा बीमारी से बचाई थी। रैबीज का आज भी कोई इलाज नही है और इसे रोकने व नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण अभी भी केवल एकमात्र प्रभावी उपाय है। यह दिन प्राणिरूजा रोगों (ज़ूनोसिस) के महत्व एवं इनसे बचाव के बारे में जनता में जागरूकता पैदा करके एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए मनाया जाता है।
इस अवसर पर पशुजन स्वास्थ्य विभाग के विभागाध्यक्ष डा. किरण भीलेगांवकर ने बताया कि 75 प्रतिशत से ज्यादा बीमारी जो आजकल मिल रही हैं वो जूनोटिक हैं इनसे बचाव के लिए भारत सरकार द्वारा कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जिनमें वन हैल्थ कार्यक्रम शामिल हैं।
विश्व जूनोसिस दिवस के अवसर पर बताते हुए पशुजन स्वास्थ्य विभाग की डा. हिमानी धांजे ने कहा कि रोगी पशुओं व मनुष्यों से स्वस्थ पशुओं व मनुष्यों में फैलने वाले संचारी रोगों को अंग्रेजी में ”जूनोसिस“ कहते हैं। सीधे शब्दों में समझें तो ”जूनोसिस“, जिन्हें हिन्दी में ‘प्राणिरूजा रोग’ या ‘पशु-जनित रोग’ ‘पशुजन्य रोग’ भी कहते हैं, वे सभी संक्रामक रोग हैं जो पशु-पक्षियों व मनुष्यों के मध्य प्राकृतिक रूप से फैलते हैं। ये सक्रंामक रोग बीमार पशु-पक्षियों व मनुष्यों के सीधे या अप्रत्यक्ष सम्पर्क में आने, उनके स्रावों से प्रदूिषत जल व आहार लेने, या इनसे प्रदूिषत वायु में सांस लेने से, रोगी पशुओं द्वारा खरोंचे अथवा काटे जाने पर, संक्रमित कीट पतंगों के काटने सेे, पशु-पक्षियों के अनुचित प्रजनन व प्रबन्धन, गन्दे घरों व बाडों में मक्खियों, चूहों, काकरोच, व छिपकली से, एवं खुले में पडे पशु व मानव ंशवों व अंगों के द्वारा अन्य उनके मनुष्यों व पशुओं में फैलते है। जूनोसिस रोगों के कारण न केवल बहुत अधिक संख्या में मृत्यु होती है बल्कि रोगी पशुओं व मनुष्यों के स्वास्थ्य, उत्पादन व कार्य करने की क्षमता में भी भारी कमी होती है।
इस अवसर पर पशुजन स्वास्थ्य विभाग के जानपादिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. भोजराज, डा. डी.के. सिन्हा, डा. सुमन कुमार, डा. जेड.बी. दुब्बल तथा संस्थान के छात्र-छात्रा सहित अनेक अधिकारीगण उपस्थित रहे।