दिव्या ज्योति जागृती संस्थान की ओर से गांव दरवेश के में हवन यज्ञ का किया गया आयोजन।
स्वामी प्रजापति आनंद नूर महल से विशेष तौर पर पधारे।
फिरोजपुर 25 जनवरी {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से गांव दरवेश के में हवन यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी प्रजापत्यानंद विशेष रूप से नूरमहल से आए। साध्वी किरण भारती ने कहा कि यदि प्रदूषण इसी गति से बढ़ता रहा, वह दिन दूर नहीं जब हमारे शहर गैस चैंबर जैसे यातना शिविरों में परिवर्तित हो जाएंगे। और तो और प्रदूषण की महामारी के विस्तार के कारण गांव कस्बे भी रहने लायक नहीं रहेंगे। विस्तारित होती इस महामारी में के कुछ परिणाम तो हमें आज भी स्पष्ट दिखाई दे ही रहे हैं। आज की बहती वायु कीटाणुओं और विषैली गैसों की वाहक बन चुकी है। हरे- भरे प्रदेश रेगिस्तान में परिवर्तित होते जा रहे हैं।
साध्वी जी ने कहा कि वैदिक काल का वातावरण प्रदूषण मुक्त था। ऐसा नहीं है कि उस समय कोई उद्योग नहीं थे अविष्कार, खोजें एवं परीक्षण नहीं हुआ करते थे। सब कुछ होते हुए भी वातावरण प्रदूषित नहीं था। इस पर्यावरणीय शुद्धता एवं शुभता के पीछे एक ही रहस्य था, ऋषि गणों की अभूतपूर्व वैज्ञानिक दृष्टि। वे वातावरण संरक्षण के प्रति बेहद जागरूक थे। उन्होंने वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए अनेक प्रयोगात्मक पद्धतियों का भी अविष्कार किया था। इसमें से सबसे प्रभावी और सर्वोत्तम पद्धति थी यज्ञ पद्धति। पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण का सर्वोत्तम साधन यज्ञ है, यह सब अशुद्धियों, दोषों या प्रदूषण को दूर कर के वातावरण को पवित्र बनाता है। यज्ञों में प्रयोग होने वाले द्रव्य जैसे समिधा, सामग्री एवम् घी इत्यादि वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। जैसे की देसी गाय का घी जलाने से कोसों दूर के कीटाणु मर जाते हैं। जिससे मानव अनेक प्रकार की बीमारियों से बच जाता है। आज पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिक भी हमारे प्राचीन ऋषि गणों के इस पर्यावरण विज्ञान को मानने लगे हैं। और उन मुक्त कंठ से सराह रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने यज्ञ पद्धति का परीक्षण करके देखा और पाया है कि भारतीयों के हाथ में यह एक आश्चर्यजनक शस्त्र है। इसलिए हमें भी वातावरण को शुद्ध करने के लिए यज्ञ का आयोजन करते रहना चाहिए। यजमानों के द्वारा हवन यज्ञ के अंदर आहुतियां डाली गई।