गुरुकुल में भारतीय आर्य भजनोपदेशक परिषद् का वार्षिक अधिवेशन आयोजित

गुरुकुल में भारतीय आर्य भजनोपदेशक परिषद् का वार्षिक अधिवेशन आयोजित
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
प्राकृतिक खेती को भी मिशन बनाएं आर्य समाज के प्रचारक- आचार्य देवव्रत
गुरुकुल प्रबंधक समिति द्वारा वयोवृद्ध उपदेशकों को सम्मानित भी किया गया।
कुरुक्षेत्र, 03 जून : आर्य समाज ने हमेशा समाज से कुरीतियों को दूर कर मानव उत्थान का कार्य किया है, विशेष तौर पर आर्य समाज के भजनोपदेशकों और प्रचारकों ने गांव-गांव, गली-गली जाकर लोगों को पाखण्ड, अंधविश्वास और छुआछूत जैसी विसंगतियों के खिलाफ जागरूक किया और समाज में सकारात्मक बदलाव के साक्षी बने। आज फिर समाज को ऐसे ही बदलाव की जरूरत है जो खेती के क्षेत्र में होना अति आवश्यक है क्योंकि खेतों में प्रयोग हो रहे यूरिया, डीएपी और पेस्टीसाइड हमारे स्वास्थ्य को बीमार बना रहे है जिससे केवल प्राकृतिक खेती ही हमें बचा सकती है। ये विचार गुजरात के राज्यपालश्री एवं गुरुकुल कुरुक्षेत्र के संरक्षक आचार्य देवव्रत ने भारतय आर्य भजनोपदेशक परिषद के ‘वार्षिक अधिवेशन’ में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये। आचार्य ने कहा कि आर्य समाज के प्रचारकों को हिन्दी आन्दोलन, गो रक्षा आन्दोलन की तरह ही अब प्राकृतिक खेती मिशन को एक आन्दोलन के रूप में चलाना होगा ताकि देश का किसान रासायनिक खेती को छोड़कर गो आधारित प्राकृतिक खेती की ओर लौटे। इस अवसर पर परिषद् प्रधान सहदेव सिंह बेधड़क, उप प्रधान पंडित योगेश दत्त, महामंत्री कैलाश कर्मठ, ओएसडी टू गर्वनर डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री विनय आर्य एवं गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग सहित अनेक आर्य विद्वान् और प्रचारक मौजूद रहे।
आचार्य ने कहा कि आज 8-10 वर्ष के बच्चों को भी कैंसर जैसी घातक बीमारी हो रही हैं, माँ के दूध में भी यूरिया की पुष्टि देश के वैज्ञानिक कर चुके हैं। हर घर में शुगर, बीपी जैसी बीमारियों के मरीज हैं। यह सब हमारे दूषित खानपान के कारण हो रहा है। खेतों में पड़ने वाले पेस्टीसाइड हमारे भोजन के द्वारा हमारे शरीर में जा रहे हैं जो इन गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। डब्ल्यू. एच. ओ. का तो यहां तक कहना है कि आने वाले 10-15 वर्षों में भारत में कैंसर विस्फोट होगा। ऐसे में हम सभी का यह दायित्व है कि मानव कल्याण और प्रकृति के संरक्षण के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाएं और दूसरे लोगों को इसके लिए प्रेरित करें।
आचार्यश्री ने कहा कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना से पूर्व गोकृषि आदि रक्षिणी सभा की स्थापना की थी जिसके पीछे उनका उद्देश्य यही था कि किसान खेती के माध्यम से लोगों को शुद्ध, सात्त्विक अन्न उपलब्ध कराएं, साथ ही गो माता का संरक्षण हो। मगर आज स्थिति बिल्कुल अलग है। रासायनिक खेती में गोवंश की भागीदारी बिल्कुल समाप्त हो गई है जिसके कारण हजारों की संख्या में गोवंश सड़कों पर दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है। अधिक उत्पादन के लालच में यूरिया, पेस्टीसाइड और डीएपी के प्रयोग से धरती मां को हमने बंजर और भूमिगत जल को भी दूषित कर दिया है। उन्होंने एक वीडियो के माध्यम से प्राकृतिक खेती के पूरे कान्सेप्ट को समझाया, साथ ही प्राकृतिक, रासायनिक और जैविक खेती के बीच मूल अन्तर को स्पष्ट किया।
आचार्यश्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती से जहां गो माता का संरक्षण होगा वहीं भूमिगत जलस्तर बढ़ेगा, पर्यावरण सुधरेगा और भूमि की उर्वरा शक्ति मंे वृद्धि होगी। इसके अलावा लोगों को शुद्ध अन्न उपलब्ध होगा जिससे वे स्वस्थ रहेंगे और किसानों को उत्पादन का दोगुना मूल्य मिलेगा जिससे वे आर्थिक रूप से सम्पन्न होंगे। उन्होंने सभी उपदेशकों से आग्रह किया कि वैदिक धर्म और आर्य समाज के प्रचार के साथ-साथ वे प्राकृतिक खेती को भी अपने प्रचार का हिस्सा बनाएं, किसानों को इस बारे जागरूक करें तो यह समाज में एक नई क्रान्ति होगी। इससे पूर्व परिषद् के सभी सदस्यों ने आचार्य के साथ गुरुकुल के फार्म का दौरा कर प्राकृतिक खेती का साक्षात दर्शन किया और सभी ने आचार्यश्री के प्रयासों की सराहना की।
उपदेशकों को किया सम्मानित।
इस अवसर पर आचार्यश्री ने गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग के साथ वयोवृद्ध भजनोपदेशक धनीराम बेधड़क, मास्टर हरी सिंह, बीर सिंह आर्य, अमर सिंह, पंडित सीताराम और श्रीमती संतोषबाला आर्या को 11 हजार रुपये, शॉल और श्रीफल देकर आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान हेतु सम्मानित भी किया।




