उत्तराखंड: कांग्रेस का तंज, तो पंचायती राज मंत्री को नियमावली की जानकारी नहीं


उत्तराखंड: कांग्रेस का तंज, तो पंचायती राज मंत्री को नियमावली की जानकारी नहीं,
सागर मलिक
*भाजपा सरकार को नौकरशाही ने किया पंगु- कांग्रेस
पंचायत चुनाव-हाईकोर्ट पर टिकी निगाहें
क्या कमजोर हो चुका है जनप्रतिनिधियों का शासनतंत्र?*
कहाँ खड़ी है हुकूमत, ये पूछते हैं लोग, साया भी रहनुमा है, और सूरज भी ग़ुलाम है
पंचायत चुनाव को लेकर उत्तराखंड में जो घटनाक्रम सामने आया है, वह सिर्फ एक चुनावी चूक नहीं, बल्कि लोकतंत्र के प्रशासनिक ढाँचे में गहराई तक मौजूद गड़बड़ियों की झलक है। राजनीतिक नेतृत्व का यह दावा कि उन्हें नियमावली की जानकारी ही नहीं थी, और नौकरशाही की ओर से “नोटिफिकेशन छप नहीं पाया” जैसे जवाब, इस बात का संकेत हैं कि या तो सरकार व्यवस्था पर नियंत्रण खो चुकी है या फिर जानबूझकर जनप्रतिनिधियों की भूमिका को गौण किया जा रहा है।
यह स्थिति सवाल उठाती है कि क्या लोकतंत्र में चुने हुए नेताओं की भूमिका अब महज औपचारिक रह गई है? अगर पंचायतीराज मंत्री तक को नियमावली का ज्ञान नहीं, और निर्णय अफसरशाही के इशारे पर हो रहे हैं, तो यह शासन नहीं बल्कि नियंत्रण की स्थिति है — और नियंत्रक हैं वे, जिन्हें जनता ने नहीं चुना।
इस पूरे मामले में न्यायपालिका की सक्रियता ने समय पर हस्तक्षेप किया, लेकिन इससे पहले जो भ्रम, अव्यवस्था और प्रशासनिक असंवेदनशीलता सामने आई, वह उत्तराखंड जैसे अपेक्षाकृत शांत और सुव्यवस्थित राज्य के लिए चिंता का विषय है।
बहरहाल, नौकरशाही के ढीलेपन और विपक्षी दल कांग्रेस के तीखे तेवर के बाद हाईकोर्ट में बुधवार (आज) होने वाली सुनवाई पर जनता की नजरें टिकी हुई है।
आरक्षण रोस्टर से छेड़छाड़, नियमावली गायब और प्रशासकों की अदला-बदली ने बिगाड़ा पूरा तंत्र
पंचायत चुनावों को लेकर राज्य में उपजे संवैधानिक संकट पर कांग्रेस ने सरकार और नौकरशाही दोनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संगठन सूर्यकांत धस्माना ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार शुरू से ही पंचायत चुनाव नहीं कराना चाहती थी, और अब जब अदालत की फटकार के बाद मजबूरी में कदम बढ़ाया, तो आरक्षण रोस्टर में जानबूझकर गड़बड़ी की गई।
धस्माना ने सवाल उठाया—“कौन है प्रदेश का पंचायतीराज मंत्री? क्या उसे नियमावली की जानकारी भी है?” उन्होंने कहा कि प्रदेश में नौकरशाही पूरी तरह से मंत्रियों पर हावी हो चुकी है। निर्णय नौकरशाही ले रही है और राजनीतिक नेतृत्व केवल हस्ताक्षरकर्ता बनकर रह गया है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि पहले सरकार ने समय पर चुनाव न कराकर पंचायतों को प्रशासनिक संकट में झोंक दिया, फिर जिला पंचायत अध्यक्षों, ब्लॉक प्रमुखों और ग्राम प्रधानों को प्रशासक बना दिया। जब इनका कार्यकाल खत्म हुआ तो कई दिनों तक पंचायतें ‘लावारिस’ रहीं और फिर अफसरों को प्रशासक बना दिया गया।
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार
जब उच्च न्यायालय ने आरक्षण प्रक्रिया और चुनावी नियमावली की वैधता पर सवाल उठाया तो सरकार की तरफ से जवाब आया—”नियमावली तो नोटिफाई हो गई थी, पर अखबारों ने नहीं छापा”। धस्माना ने इस बयान को “सरकारी दिमागी दिवालियापन” करार देते हुए कहा कि जिस चुनाव की प्रक्रिया कल से शुरू होनी थी, उसे अंतिम समय में रद्द कर देना जनता के साथ विश्वासघात है।
उन्होंने पूछा कि क्या यह पूरा मामला एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है या फिर नौकरशाही के स्तर पर गंभीर लापरवाही हुई है? कांग्रेस ने इस पूरे घटनाक्रम की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए कहा कि लोकतंत्र की नींव पर इस तरह चोट स्वीकार्य नहीं है।