नवरात्रि में माँ दुर्गा की विशेष पूजा अर्चना श्रद्धा भाव से करनी चाहिए : डॉ. सुरेश मिश्रा

कुरुक्षेत्र, संजीव कुमारी : श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश ज्योतिष व वास्तु आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। शारदीय नवरात्रि 22 सितम्बर से शुरू हो रही है। शक्ति का यह महापर्व 1अक्तूबर तक चलेगा। कई स्थानों में चौदस तिथि 6 अक्तूबर तक भी व्रत रखते है।
नवरात्रि में 9 दिनों तक माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। नवरात्र के समय घरों में कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है। नवरात्रि के दौरान देशभर में कई शक्ति पीठों पर मेले लगते हैं। कई मंदिरों में जागरण और मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की झांकियां बनाई जाती हैं। केन्द्रीय सरकार द्वारा कोरोना नियमों का अवश्य पालन करें।
ऐसे करें भगवती माँ दुर्गा के स्वागत की तैयारी :
नवरात्रि में घर पर मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को स्थापित करने के लिए लकड़ी की चौकी का होना जरूरी है।
माता को लाल रंग का कपड़ा बहुत पसंद होता है ऐसे में चौकी पर बिछाने के लिए लाल कपड़ा अवश्य होना चाहिए।
कलश स्थापना में सोने, चांदी या मिट्टी के कलश का प्रयोग किया जा सकता है।
कलश स्थापना और मां दुर्गा की पूजा में आम के पत्तों का होना बहुत जरूरी होता है। आम के पत्तों से तोरण द्वार बनाना चाहिए।
नवरात्रि में कलश स्थापना और पूजा में जटा वाला नारियल के साथ पान, सुपारी, रोली, सिंदूर, फूल और फूल माला,कलावा और अक्षत यानि साबूत चावल होना चाहिए।
हवन के लिए आम की सूखी लकड़ी, कपूर, सुपारी, घी और मेवा जैसी सामग्री का होना आवश्यक है।
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त : हिंदू पंचांग के अनुसार, 22 सितंबर को कलश स्थापना का शुभ समय सुबह 6 बजकर 06 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 10 मिनट तक कर सकते है। अभिजीत मुहूर्त11 बजकर 50 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भी साधक घटस्थापना कर सकते हैं।
नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान इस प्रकार होता है : प्रथम नवरात्रि – माँ शैलपुत्री पूजा की जाती है I यह माँ दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं।
द्वितीय नवरात्रि – माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है I ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। विशेष पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
तृतीया नवरात्रि – माँ चंद्रघंटा पूजा होती है I चंद्रघण्टा देवी शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
चतुर्थ नवरात्रि : माँ कूष्मांडा रूप में पूजा की जाती है I माँ कूष्माण्डा सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है।
पंचम नवरात्रि – माँ स्कंदमाता रूप की पूजा होती है I माँ स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
षष्ठ नवरात्रि – माँ कात्यायनी रूप की पूजा होती है I माँ कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
सप्तमी नवरात्रि – माँ कालरात्रि रूप में पूजा होती है I कालरात्रि माँ शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इनकी पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
अष्टमी नवरात्रि – माँ महागौरी रूप में पूजा होती है I माँ महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। विशेष पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
नवमी नवरात्रि – माँ सिद्धिदात्री रूप में पूजा होती है I सिद्धिदात्री माँ केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। विशेष पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
मां दुर्गा की प्रतिदिन श्रद्धा और भक्ति भावना से सुबह शाम आरती परिवार सहित करे और मां को फल या पंचमेवे का भोग लगाने के बाद सभी परिवार सदस्य प्रसाद भक्तिपूर्वक खाएं। सुख समृद्धि हेतु नवरात्र में छोटी छोटी कंजकों की पूजा करें।
नवरात्रि में नौ रंगों का महत्व :
नवरात्रि के समय हर दिन का एक विशेष रंग होता है। मान्यता है कि इन रंगों का उपयोग करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आप प्रतिपदा को पीला, द्वितीया को हरा, तृतीया को भूरा, चतुर्थी को नारंगी, पंचमी को सफेद,षष्ठी को लाल, सप्तमी को नीला,अष्टमी को गुलाबी और नवमी को बैंगनी रंग के वस्त्र पूजा में पहन सकते है। घर के मुख्य द्वार पर रंगोली भी नौ दिन इन रंगो से बना सकते है। माँ दुर्गा आपकी श्रद्धा और भावना को देखती है और उसके अनुसार ही श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है I शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में ही भगवान श्रीराम ने माँ दुर्गा की आराधना कर महाविद्वान रावण का वध किया था और समाज को यह संदेश दिया था कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। केवल चरित्रवान ही पूजा जाता है। नारी की जहाँ भी पूजा होती है,नारी का जहाँ भी सम्मान होता है वही सुख समृद्धि होती है और दैवी कृपा होती है।