अहोई अष्टमी का व्रत सुख समृद्धि देता है : आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा

कुरुक्षेत्र, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक : श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश ज्योतिष व वास्तु आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा का विधान है। इसीलिए इस तिथि को अहोई अष्टमी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन भारतीय महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। सोमवार 13 अक्तूबर 2025 को अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सुख समृद्धि हेतु माताएं रखेंगी।
अहोई अष्टमी को पूजा करने की विधि और शुभ मुहूर्त: करवा चौथ की तरह इस व्रत में भी महिलाओं को सुबह उठकर स्नान करना चाहिए। स्वच्छ वस्त्र धारण कर मिट्टी के मटके में पानी भरना चाहिए। पूरे दिन कुछ खाएं नहीं और अहोई माता का ध्यान करें। बालक की उम्र के अनुसार उतने ही चांदी के मोती धागे में डालें और पूजा में रखें। शाम को अहोई माता की पूजा होती है और उन्हें भोग लगाया जाता है। भोग में पूरी, हलवा, चना आदि होता है। इस व्रत को तारे देखने के बाद खोला जाता है। इसमें भी बायना निकालकर सास, ननद या जेठानी को दिया जाता है। अहोई माता की माला को दीवाली तक गले में पहनना होता है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। इस दिन महिलाएं तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। पूजा में मां भगवती के प्रति समर्पण और श्रद्धा भक्ति मुख्य है । मां यह तन मन धन , कारोबार और परिवार आपका है। आप ही मेरे सर्वस्व है यह प्रार्थना मन से मां के सम्मुख करें। ज्योतिष शास्त्र अनुसार आपके श्रेष्ठ कर्म और पुरुषार्थ से ही अच्छे भाग्य का निर्माण होता है।
अहोई पूजा का शुभ मुहूर्त : अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ समय शाम 5:51 बजे से लेकर 7:10 बजे तक रहेगा। इस समय महिलाएं उपवास रखकर अहोई माता की पूजा करती हैं ।
तारों को अर्घ्य देने का समय : व्रति महिलाएं उपवास के बाद शाम 6:17 बजे तक आसमान में तारे दिखाई देने पर उन्हें अर्घ्य देती हैं। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है ।
इस समय व्रत की कथा सुनकर महिलाएं माता अहोई की पूजा करें। इसके बाद तारे निकलने पर उन्हें जल का अर्घ्य प्रदान करें और फिर भोजन करके व्रत का समापन करें।
अहोई माता की पूजा करने के लिए गाय के घी में हल्दी मिलाकर दीपक तैयार करें, चंदन की धूप करें। देवी पर रोली, हल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान देने से शुभ फल मिलता है। वहीं, जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए अहोई माता पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। गरीबों को दान दें या भोजन कराएं। गौशाला में गायों और बछड़ों को हरा घास और गुड़ खिलाए। ध्यान , कीर्तन और मंत्र जाप के पश्चात आरती करें और प्रसाद को भोग लगाए। फिर सभी परिवार के सदस्यों सहित प्रसाद श्रद्धा और भक्ति पूर्वक ले। अपने माता पिता ,सास ससुर , पति और बुजुर्गों की सेवा करके आशीर्वाद प्राप्त करे। बच्चों के साथ मधुर संबंध और व्यवहार सनातन धर्म अनुसार रखें। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस राजा दशरथ,मां कौशल्या, मां कैकई मां सुमित्रा , मां जानकी और भगवान राम , भाई लक्ष्मण, भाई भरत और भाई शत्रुघ्न और राजा जनक आदि ने त्रेता युग में आदर्श स्थापन करके दिखाया। सभी के जीवन ने महर्षि वशिष्ठ जी की तरह मार्गदर्शन हेतु सदगुरु का होना आवश्यक है। समर्थगुरु धाम , मुरथल के संस्थापक आदरणीय समर्थगुरू सिद्धार्थ औलिया जी बताते है कि आत्मा ,परमात्मा और आध्यात्मिक क्षेत्र में जीवित सदगुरु की बहुत अधिक महिमा है। सभी के जीवन ने महर्षि वशिष्ठ जी की तरह मार्गदर्शन हेतु सदगुरु का होना आवश्यक है।
आदि सनातन धर्म में अध्यात्म और वैज्ञानिकता का समावेश है। अनुभव ज्ञान ही मुख्य है। सत्संग के समय सुशील तलवाड़, संगीता तलवाड़, अनु पाहवा, सुरेन्द्र कौर, सुमित्रा पाहवा, निशा अरोड़ा, शिमला धीमान, फूलकली, ऊषा शर्मा आदि उपस्थित रहें। पंडित राहुल मिश्रा ने कार्तिक मास की कथा और आरती की।