दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का किया गया आयोजन

फिरोजपुर 26 फरवरी [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]=

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के द्वारा फिरोजपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम किया गया ।जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी दविंदर भारती जी ने विचार देते हुए कहा की ध्यान मानसिक शांति का उपाय है। हमारी सनातन भारतीय संस्कृति की मेधा प्रज्ञा इस तथ्य को सर्वसम्मति से स्वीकार करती है कि ध्यान से ही मनुष्य मानसिक शांति को प्राप्त कर सकता है। परंतु विडंबना है कि आज मूलतः सम्मोहन क्रिया को ही ध्यान का अंग स्वीकार कर लिया कर लिया जाता है। जब कि ऐसा नहीं है। ध्यान तो वैदिक सनातन पद्धति का विशुद्ध अंग है। जो की ध्येय और ध्याता के संयोग से पूर्ण होता है ।समस्त धार्मिक ग्रंथो में ईश्वर को प्रकाश स्वरूप बताया गया है। जैसे कि वेदों में ईश्वर को “आदित्यवर्णीम ” भाव की सूर्य स्वरूप बढ़कर अंतःकरण में उसके प्रकाश स्वरूप दर्शन की बात की गई है । जिसे ’गायत्री मंत्र’ में ’भर्गो देवस्य धीमहि’ के उदघोष स्वरूप बताया गया है। जिसमें पूर्ण सद्गुरु शरणागति साधक को ब्रह्म ज्ञान की दीक्षा प्रदान कर उसकी दिव्य दृष्टि खोलकर उसे ध्येय स्वरूप ईश्वर के प्रकाश स्वरूप का दर्शन करवाते हैं । फिर आरंभ होता है ध्यान की शाश्वत प्रक्रिया जिससे ध्याता अपने भीतर सत्याचित आनंद को प्राप्त करता है। ईश्वर से एकात्मक हुए साधक का हर दिन हर पल एक दिव्य पर्व से जीवन का गर्व बन जाता है। कार्यक्रम में उपस्थित साधकों ने सामूहिक ध्यान कर जहां मानसिक शांति एवं परम आनंद को प्राप्त किया ।संस्थान के द्वारा फिरोजपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम किया गया ।जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी दविंदर भारती जी ने विचार देते हुए कहा की ध्यान मानसिक शांति का उपाय है। हमारी सनातन भारतीय संस्कृति की मेधा प्रज्ञा इस तथ्य को सर्वसम्मति से स्वीकार करती है कि ध्यान से ही मनुष्य मानसिक शांति को प्राप्त कर सकता है। परंतु विडंबना है कि आज मूलतः सम्मोहन क्रिया को ही ध्यान का अंग स्वीकार कर लिया कर लिया जाता है। जब कि ऐसा नहीं है। ध्यान तो वैदिक सनातन पद्धति का विशुद्ध अंग है। जो की ध्येय और ध्यता की संयोग से पूर्ण होता है ।समस्त धार्मिक ग्रंथो में ईश्वर को प्रकाश स्वरूप बताया गया है। जैसे कि वेदों में ईश्वर को “आदित्यवर्णीम ” भाव की सूर्य स्वरूप बढ़कर अंतःकरण में उसके प्रकाश स्वरूप दर्शन की बात की गई है । जिसे ’गायत्री मंत्र’ में ’भर्गो देवस्य धीमहि’ के उदघोष स्वरूप बताया गया है। जिसमें पूर्ण सद्गुरु शरणागति साधक को ब्रह्म ज्ञान की दीक्षा प्रदान कर उसकी दिव्य दृष्टि खोलकर उसे ध्येय स्वरूप ईश्वर के प्रकाश स्वरूप का दर्शन करवाते हैं । फिर आरंभ होता है ध्यान की शाश्वत प्रक्रिया जिससे ध्यता अपने भीतर सत्याचित आनंद को प्राप्त करता है। ईश्वर से एकात्मक हुए साधक का हर दिन हर पल एक दिव्या पर्व से जीवन का गर्व बन जाता है। कार्यक्रम में उपस्थित साधकों ने सामूहिक ध्यान कर जहां मानसिक शांति एवं परम आनंद को प्राप्त किया ।

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