किसी भी राष्ट्र के सर्वागीण विकास के लिए उसकी मातृभाषा उस राष्ट्र का प्राण होती है : डा. श्रीप्रकाश मिश्र

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
संवाददाता – गीतिका बंसल।
दूरभाष – 94161 91877

मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में भाषा संवाद कार्यक्रम संपन्न।

कुरुक्षेत्र 21 फरवरी : मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित भी करती है। मातृभाषा ही किसी भी व्यक्ति के शब्द और संप्रेषण कौशल की उद्गम होती है। मातृभाषा व्यक्ति के संस्कारों की परिचायक है। किसी भी राष्ट्र के सर्वागीण विकास के लिए उसकी मातृभाषा उस राष्ट्र का प्राण होती है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित भाषा संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये।
कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने विभिन्न विधा में हिंदी की कविताएं प्रस्तुत की। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा किसी भी समाज की स्थानीय मातृभाषा उस समाज के संस्कृति की परिचायक ही नहीं बल्कि आर्थिक संपन्नता का आधार भी होती है। मातृभाषा का नष्ट होना राष्ट्र की प्रासंगिकता का नष्ट होना होता है। मातृभाषा को जब अर्थव्यवस्था की दृष्टि से समझने की कोशिश करते हैं तो यह अधिक प्रासंगिक और समय सापेक्ष मालूम पड़ता है। किसी भी समाज की संस्कृति समाज के खानपान और पहनावे से परिभाषित होती है, यही खानपान और पहनावा जब अर्थव्यवस्था का रूप ले लेता है तो यह ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। विवरण मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था। भारतीय संविधान निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में एक सामंजस्य स्थापित हो। आज अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। किन्तु वैश्‍विक दौड़ में आज हिन्दी कहीं भी पीछे नहीं है। यह सिर्फ़ बोलचाल की भाषा ही नहीं, बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है। आज आवश्यकता है हिंदी सम्पूर्ण देश की जन भाषा बने। कार्यक्रम में शिक्षक प्रवीण एवं कुलदीप को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के शिक्षक, विद्यार्थी आदि उपस्थित रहे।

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