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गांव की पगडंडियों से न्यूयॉर्क की सड़कों तक – प्रेमशीला की उड़ान

संघर्ष से बदलाव की नई इबारत लिखती प्रेमशीला

महासमुंद 5 नवंबर 2025/ दो कमरों के मिट्टी के घर से शुरू हुआ सफर और मंज़िल बनी न्यूयॉर्क की सड़कों तक की यात्रा। यह कोई कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है—छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे महासमुंद की बेटी प्रेमशीला बघेल की।

शुरुआत वहीं से जहां सपने भी रुक जाते हैं

महासमुंद में जन्मी प्रेमशीला का बचपन अभावों और संघर्षों में बीता। माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे, दो बहनों में छोटी बेटी के रूप में घर में पहचान बनी।घर में दो वक्त की रोटी भी कभी मयस्सर नहीं थी। शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास—तीनों ही उनके लिए एक सपना भर थे। पर जब 19 वर्ष की उम्र में बाबू जी ने उन्हें एक सामाजिक संस्था के काम से जोड़ा, तो उन्होंने उसी राह को अपनी मंज़िल मान लिया। एक बेटी ने जिस तरह खुद को और परिवार को सम्हाला ये कई बेटे भी नहीं कर पाते।

यहीं से शुरू हुआ महिलाओं का सामाजिक जागरूकता का सिलसिला, जो आज तक जारी है।

संघर्ष नहीं, ध्येय बना जीवन

वर्ष 1996 से महिलाओं और वंचित समुदायों के हक की लड़ाई में सक्रिय प्रेमशीला ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। छत्तीसगढ़ महिला जागृति संगठन में 11 वर्षों तक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने हजारों महिलाओं को उनके अधिकार, स्वर और स्वाभिमान से जोड़ा। इस दौरान न्यूयॉर्क में आयोजित वर्ल्ड मार्च ऑफ वुमन वर्ष 2000 में महिलाओ पर बढ़ती हिंसा और गरीबी जैसे ज्वलंत मुद्दों को दुनिया के सामने रखने संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के समक्ष एकजुट होकर दृढ़ता से संदेश पहुंचाया। भारत की 25 संघर्षरत महिलाओं के साथ छत्तीसगढ़ की ओर से प्रतिनिधित्व कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

अभावों से आगे बढ़कर शिक्षा में रच डाली इबारत

जहां अभाव थे, वहीं उन्होंने अवसर तलाशे। शुरुआती पढ़ाई के बाद बीच में पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन रुकना उन्हें मंज़ूर नहीं था। उन्होंने काम करते हुए एम.ए. समाज शास्त्र, मास्टर ऑफ सोशल वर्क और छत्तीसगढ़ी भाषा में स्नातक डिप्लोमा किया—जो बताता है कि ज़िंदगी में कभी भी देर नहीं होती, अगर इरादा मजबूत हो। विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं में काम करने के बाद खुद का संगठन चलाने कर अपने अनुभवों को जमीन में उतारने की जिजीविषा ने एक नए संस्था उन्नयन जन विकास समिति की जन्म दिया। वर्ष 2005 में इस एनजीओ की मुखिया बनकर कमान संभाली।

हर मोर्चे पर महिलाओं की आवाज बनीं

प्रेमशीला का सामाजिक कार्य सिर्फ भाषणों या सभाओं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया:_उन्होंने काम करते हुए अपनी संस्था को मजबूत किया।बहुत छोटे छोटे फंड की मदद से सामाजिक मुद्दों पर कार्य करना शुरू किया।

महासमुंद जिले में लगभग1500 महिला समूहों के बैंक खातों का डिजिटलीकरण करवाया।नाबार्ड, एनयूएलएम, जैसी योजनाओं के साथ ग्रामीण और शहरी 15000 महिलाओं के समूह को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा पहल की।

महिला हिंसा, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल श्रम और लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दों पर सम्मेलन, प्रशिक्षण, नुक्कड़ नाटक और कानूनी जागरूकता अभियान के माध्यम से संदेश देती रही।

किशोरी बालिकाओं के स्वास्थ्य,शिक्षा के लिए नवा अंजोर जैसे बुनियादी शिक्षा से जुड़कर उनके लिए एक नई जमीन तैयार किया ।बाल विवाह के विरुद्ध अभियान में आगे बढ़कर न केवल महिलाओं को बल्कि पुरुषों को भी जागरूक किया।

पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान में गांव गांव जाकर पर्यावरण मित्र बनाए।

कुष्ठ पीड़ितों और दिव्यांगों की बनी सहारा

वर्ष 2005 से 2008 तक राजनांदगांव जिले में कुष्ठ पीड़ितों और दिव्यांगों का समूह बनाकर उनके साथ आजीविका मूलक कार्य किया। उन्हें जीने का नया आत्मविश्वास दिया । ऐसे 100 समूह बनाकर वंचित और समाज के मुख्य धारा से कटे लोगों की आवाज बनी। 

इसके अलावा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बुनकर महिलाओं को हाथ करघा से जोड़ा ,साबुन निर्माण, कुम्हार महिलाओं को मिट्टी की आधुनिक कला से और बसोड महिलाओं को बांस शिल्प और घरेलू महिलाओं को महिला कैंटीन से जोड़कर आजीविका की नई परिभाषा गढ़ी।

नेतृत्व की वो मिसाल, जो हर महिला के भीतर रोशनी जगाए

उनका नेतृत्व किसी पद या पुरस्कार से नहीं, बल्कि सामुदायिक विश्वास और बदलाव के जज़्बे से उपजा है। सामाजिक कार्यों में उनके योगदान को कई संगठनों ने सराहा, पर उन्होंने कभी उसका श्रेय नहीं लिया—बल्कि हर सफलता को ‘समूह की जीत’ कहा।

फिर भी उनके इस सामाजिक बदलाव की पहल को समय समय पर पहचाना गया और अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। जिसमें शासकीय,और गैर सरकारी संस्था,बैंक समूह, तथा मीडिया समूह द्वारा प्रदत सम्मान है।

एक कहानी नहीं, एक आंदोलन

आज भी प्रेमशीला महासमुंद के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक “सोशल चेंज एजेंट” के रूप में कार्य कर रही हैं। वे सिर्फ एक नाम नहीं, एक ‘सोशल वॉरियर’ हैं। उन्होंने महिलाओं को सिर्फ समूहों में नहीं जोड़ा, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मबल से भी जोड़ा।

समाज को दिया खुद बदलकर संदेश

समाज को रास्ता दिखाने पहले खुद में बदलाव किया।आज भी ऐसे मुद्दों का डटकर सामना कर रही है। नशा के खिलाफ ऐसा जागरूकता चलाया की पहले अपने गांव से शुरूआत की। दारू भट्टी तोड़ा ,नशा मुक्ति का संकल्प दिलाया और युवाओं को पर्यावरण,शिक्षा से जोड़ने की पहल की ।

लेकिन समुचित फंड के अभाव में अपने सपनों को वह रंग नहीं दे सकी जिसकी वो हकदार है।कार्य में निस्वार्थ भाव से लगी रही। उनकी टीम भी साथ है ।

संक्षिप्त जीवन परिचय – श्रीमती प्रेमशीला बघेल

  जन्म 24 अप्रैल 1975 को महासमुंद के पंजाबी पारा में हुआ है। पिता श्री के.के. बघेल एवं माता श्रीमती बसंती बघेल है। इनके एक बहन है। इनकी स्कूली शिक्षा महासमुंद में सम्पन्न हुई तथा अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई महासमुंद से की है। वे मात्र 19 वर्श की आयु से ही समाज कार्य में रूचि होने के कारण इन्होने सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ किया तथा विभिन्न संगठनों के साथ सामाजिक उत्थान, जागरूकता के लिए कार्य किया। ग्रामीण और षहरी 15 हजार महिलाओं के समूह को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहल किया। महिला शिक्षा, हिंसा, बाल श्रम एवं लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दो पर प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान के माध्यम से सकारात्मक संदेश दिया। कुश्ठ पीड़ित दिव्यागों के स्व-सहायता समूह बनाकर वंचित एवं समाज से कटे हुये लोगो की आवाज बनी। इसके अलावा सन् 2000 में महिलाओं पर बढ़ते हिंसा एवं गरीबी जैसे ज्वलन्त मुद्दो को संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से वर्ड मार्च आफ वूमेन जैसे कार्यक्रम में भाग लिया। वर्तमान में महिलाओं के आजीविका पर कार्य कर रही है।

उन्होंने 19 वर्ष की उम्र में 1996 से 2005 तक महासमुंद स्थित सामाजिक संस्था से बालवाड़ी शिक्षिका से सामाजिक बदलाव की शुरुवात की। तब से आज तक अनवरत शासकीय और अशासकीय संस्थाओं के साथ मिलकर आवाज बुलंद कर रही है।

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