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मानव में क्रांति और विश्व में शांति ब्रह्म ज्ञान द्वारा ही संभव है:स्वामी विज्ञानानंद जी।

केन्द्रीय कारागार फिरोजपुर में चल रहा तीन दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम संम्पन्न।

(पंजाब)फिरोजपुर 15 मार्च [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]=

सेंट्रल जेल प्रशासन फिरोजपुर द्वारा कैदियों के मार्गदर्शन हेतु जेल परिसर में आयोजित तीन दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम के आज अन्तिम दिवस दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने कैदी बंधुओ को सम्बोधित करते हुए कहा कि कोई भी इंसान जन्म से बुरा नहीं होता है। परन्तु वह इंसान सर्वाधिक बुरा अवश्य होता है जो अपने जीवन में आए परिवर्तन को नहीं समझ पाता है और उसे सुधारने हेतु प्रयासरत भी नहीं होता है। परिवर्तन संसार का अटल नियम है। यदि हम प्रकृति की और दृष्टिपात करें तो हम देखते है कि दिन ढलता है तो रात्रि और तत्पश्चात सुबह होती है। ऋतुओं में भी बदलाव आता रहता है, गर्मी सर्दी बसंत पतझड़ आदि। मौसम और प्रकृति के साथ-साथ मानव में भी बदलाव आता है। बचपन में खिलौनों के रुप मे युवावस्था में टेक्नोलॉजी के रुप में। बहुत सा बुद्विजीवी वर्ग भी मानता है कि समाज व इंसान को परिवर्तन की आवश्यकता है। ऐसा परिवर्तन जो समाज व मानव को सुखी, शान्त, कर सकें। प्रत्येक यह सुझाव तो दे रहा है परन्तु इसका किसी को नहीं पता कि यह कैसे संभव है। समाज व मानव के प्रयासो से अनेक आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक परिवर्तन भी किए गये है, किन्तु वह ज्यादा कारगर सिद्व नहीं हुए है। परिवर्तन दो तरह का होता है। पहला बाहरी व दूसरा आंतरिक। एक तो जब समाज बदलता है तो इंसान बदलता है। जैसे एक व्यक्ति अगर विदेश जाता है तो उसको वहां के कानून का पालन करना होता है, किंतु यह बदलाव उस पर थोपा गया होता है। जरा सी ढील देनें पर वह इन नियमों की अवहेलना भी कर देता है। आपने बहुत सी क्रान्तियों के बारे में सुना होगा। जैसे रोम, यूनान, जर्मन, आदि। किन्तु यह कहीं न कहीं जाकर बिखर गयी अर्थात किसी को परिवर्तन में नहीं ला पाई। क्योंकि ये परिवर्तन आंतरिक नहीं थे। इसलिए समाज को आध्यात्मिक परिवर्तन की जरुरत है। संत अरविंदु भी कहते है कि आज जरुरत है आध्यात्मिक र्कायकर्ताओं की जिनकी नि:स्वार्थ तपस्या और साधना मानव के लिए सर्मपित हो सकें। आर्कमिडीज कहते है अगर मुझे केन्द्र बिन्दु मिल जाए तो मैं पूरे विश्व को बदल सकता हुॅ। किन्तु वह ऐसा कर नहीं कर पाए। क्योंकि वह उसे बाहर ढुढंते रहे। जब कि रामतीर्थ कहते है कि केन्द्र बिन्दु आपके भीतर है और समय-समय पर हमारे संतो ने मानव तन के भीतर इसे प्रकट किया और मानव के भीतर स्थाई परिवर्तन लाए। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण है। महात्मा बुद्व के द्वारा अगुुंलीमाल के भीतर उस केन्द्र बिन्दु के प्रकटीकरण से अगुुंलीमाल जैसा खुंखार डाकू भी संत में परिणीत हो गया। और यही परिवर्तन आज के समय में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा तिहाड जेल में 1996 से किया जा रहा है। अनेक कैदी बंधु वहां इस केन्द्र बिन्दु को जानकर सुधर चुके है। अब आप के लिए इस के अवसर उपलब्ध करवाया जा रहा है। ताकि आप भी समाज की धारा के साथ चलकर चल सकें और एक खुशहाल व शांत जीवन जीने के लायक हो पाए।
“वंदे मातरम्” की अवधारणा के अनुसार प्रकृति का संस्कृति से समन्वय स्वीकार करते हुए आज संस्थान की ओर से कारागार अधीक्षक सतनाम सिंह, स्वामी विज्ञानानंद व जज मानव गर्ग ने कैदी बंधुओं सहित कारागार परिसर में “पौधारोपण” भी किया। साथ ही समस्त कैदी बंधुओं ने नशा न करने, प्रकृति और संस्कृति का संरक्षण करने, चारित्रिक उत्थान करने, नारी जाति का संरक्षण करने का सामूहिक संकल्प भी लिया। कार्यक्रम के अंत में कारागार अधीक्षक सतनाम सिंह ने संस्थान के समाज कल्याण हेतु किये जा रहे सामाजिक कार्यों एवं सामाजिक प्रकल्पों के लिए संस्थान का ह्रदय से आभार व्यक्त किया।

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