भारत की सुनहरी धरती को हम लाल नहीं होने देंगे… डॉ. परविंदर सिंह


भारत की सुनहरी धरती को हम लाल नहीं होने देंगे… डॉ. परविंदर सिंह।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
22 अप्रैल 2025 की वह मनहूस तारीख जब अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार घाटी के पहलगाम में आतंकियों ने खूनी खेल खेला और 27 पर्यटकों के लहू से रक्तरंजित कर दिया। यूं तो भारत की आजादी के बाद से ही कश्मीर घाटी ऐसे हमलों से रक्तरंजित होती चली आ रही है लेकिन पहलगाम का हमला एक नया एंगल छोड़ गया है, जो यह सोचने पर बाध्य कर रहा है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां पर लोकतंत्र की बहाली क्या अभी तक नहीं हुई। इतनी नफरत, इतना अलगाव, इतनी रंजिश क्या अभी भी दिमागो में भरी हुई है जो उस दिन निकल कर सामने आ गई। बेरोजगारी के दंश से बेजार कश्मीरी शायद कुछ वर्षों से राहत महसूस कर रहे थे। देश विदेश के लोगों का धरती के स्वर्ग कश्मीर में सैर सपाटा जोर पकड़ रहा था। ऐसी स्थिति में ये आतंकवादी हमला यह बताने के लिए पर्याप्त है कि पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और बंदूक के जोर पर निर्दोषों का खून बहाकर भारत को अशांत करने और समूचे विश्व में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा, मान सम्मान सर्वोच्च दर्जा सबकुछ इन दहशतगर्दो को मंजूर नहीं है। थोड़ी सी चूक सुरक्षा में तो हुई है। इंटेलीजेंस का फेल्योर भी माना जा सकता है मगर इस तरह खून खराबा होगा। दहशतगर्दों के दिलो दिमाग में भारत के टुकड़े करने के भाव और हरकतें इस कदर घर कर चुकी हैं कि अब इनका इलाज पूरी तरह से करना ही पड़ेगा। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता यह बात सदियों से चली आ रही थी। इस हमले से यह बात पूरी तरह झूठी साबित हो चुकी है। हिंदू मुस्लिम के बीच जो खाई है वह और गहरी हो गई है। अब अगर समूचे भारत में हिंदू मुस्लिम के बीच अलगाव के ऐसे नासूर और बड़े हुए तब तो बहुत मुश्किल होगा। इस तरह की हरकतें विकसित होते जा रहे भारत और विश्व में बढ़ती जा रही उसकी प्रतिष्ठा पर भी आघात है। पाकिस्तान का जन्म ही धार्मिक आधार पर हुआ। बटवारा भी हिंदू मुस्लिम का हुआ और जरा पीछे जाएं तो इतिहास यह कहता है कि कश्मीर की समस्या भारत और पाकिस्तान के मध्य सबसे जटिल समस्या है। स्वतन्त्रता के पश्चात् दो नये राज्य बने, तो देशी रियासतों को स्वतंत्रता प्रदान की गई कि वह अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में विलय हो सकती हैं या स्वतंत्र रह सकती हैं। अधिकांश रियासतें भारत या पाकिस्तान में मिल गईं। कश्मीर के राजा हरिसिंह ने अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र रखने का निर्णय लिया। राजा हरिसिंह का विचार था कि कश्मीर यदि पाकिस्तान में मिलता है तो जम्मू की हिन्दू जनता और लद्दाख की बौद्ध जनता के साथ अन्याय होगा और यदि वह भारत में मिलता है तो मुस्लिम जनता के साथ अन्याय होगा। अत: उसने यथास्थिति बनाये रखी और विलय के विषय पर तत्काल कोई निर्णय नहीं लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयास – संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने इस समस्या के समाधान के लिए पांच राष्ट्रों चेकोस्लोवाकिया, अर्जेण्टीना, अमेरिका, कोलम्बिया और बेल्जियम के सदस्यों का एक दल बनाया, इस दल को मौके पर जाकर स्थित का अवलोकन करना था और समझौते का मार्ग ढूंढना था। दल ने मौके पर जाकर स्थिति का अध्ययन किया तथा अपनी रिपोर्ट में निम्न बातों का उल्लेख किया पाकिस्तान अपनी सेनाएँ कश्मीर से हटाए तथा कबाइलियों और ऐसे लोगों को जो कश्मीर के निवासी नहीं हैं, वहाँ से हटाने का प्रयास करें। जब पाकिस्तान उपर्युक्त शर्तों को पूर्ण कर लेगा तब आयोग के निर्देशों पर भारत भी अपनी सेनाओं का अधिकांश भाग वहाँ से हटा ले। अन्तिम समझौता होने तक युद्धविराम की स्थिति रहेगी और भारत कश्मीर में स्थानीय अधिकारियों के सहयोग के लिए उतनी ही सेनाएँ रखेगा जितनी कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक होगा। जनमत संग्रह के प्रयास – रिपोर्ट के आधार पर दोनों पक्षों में लम्बी वार्ता के बाद 1 जनवरी, 1949 को युद्ध विराम के लिए सहमत हो गए। कश्मीर के विलय का निर्णय जनमत संग्रह के आधार पर होना था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनमत संग्रह की शर्तों को पूर्ण करने के लिए एक अमेरिका अधिकारी को प्रशासक के रूप में नियुक्त किया। प्रशासक ने भारत एवं पाकिस्तान से जनमत संग्रह के आधार पर चर्चा की परन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला अतः उसने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। पाकिस्तान की अमेरिका से संधि – पाकिस्तान कश्मीर को छोड़ना नहीं चाहता था बल्कि उसका दावा भारत के नियन्त्रण में स्थित कश्मीर पर भी था। अत: उसने अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि की तथा शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका से संधि कर अपना पक्ष मजबूत बनाने का प्रयास किया। पाकिस्तान ने सन् 1954 में अमेरिका से संधि की और सन् 1955 में वह ‘सेण्टो’ नामक संगठन का सदस्य भी बन गया। इसका सदस्य बनने से उसे अमेरिका की सहानुभूति प्राप्त हुई। इसके बदले उसे कुछ सामरिक अड्डे भी प्राप्त हुए। इन परिस्थितियों में पं. नेहरू ने कश्मीर नीति में परिवर्तन किया। उन्होंने जब तक पाकिस्तान अपनी सेना नहीं हटा लेता तब तक जनमत संग्रह से मना किया। कश्मीर के प्रश्न पर सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया। इस समर्थन से भारत की स्थिति मजबूत हो गयी। भारत द्वारा जम्मू – कश्मीर को विशेष दर्जा-6 फरवरी, 1954 को कश्मीर की विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर जम्मू-कश्मीर राज्य का विलय भारत में करने की सहमति प्रदान की। भारत सरकार ने 14 मई, 1954 को संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया। 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हो गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक अभिन्न अंग बन गया। इसके बाद पाकिस्तान निरन्तर कश्मीर का प्रश्न उठाकर वहाँ राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का प्रयास करता रहा है। पाकिस्तान ने इस मामले को सुरक्षा परिषद् में उठाकर जनमत संग्रह की मांग की। पाकिस्तान को इस प्रश्न पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन प्राप्त रहा परन्तु भारत ने इसका विरोध किया। भारत की मित्रता सोवियत संघ के साथ भी थी। अतः सोवियत संघ ने विशेषाधिकार का प्रयोग कर मामले को ठंडा किया। सन् 1962 में पाकिस्तान ने कश्मीर में पुन: जनमत संग्रह की माँग उठायी परन्तु पुनः सोवियत संघ ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग किया। पाकिस्तान में जितनी सरकारें आयी हैं वे कश्मीर के मुद्दे को जीवंत रखने का प्रयास करती हैं जबकि भारत के लिए यह मुद्दा उसकी अखण्डता एवं सम्मान का प्रश्न है।
लेकिन यह नहीं भूला जाना चाहिए कि भारत अब बहुत सशक्त है। आर्थिक, सामाजिक, वैश्विक स्तर बहुत ऊचा हुआ है। विश्व के तमाम देश भारत के साथ खड़े हुए है। भारत की जनता अपनी सरकार से मांग कर रही है कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए। साथ ही भारत में मुस्लिम आतंकवाद के समर्थकों, उसके साथियों और गद्दारी करने वाले लोगों को भी अलग-थलग करके सजा दी जाएं। भारत ऐसा करने में सक्षम है। एक अच्छी बात यह भी हुई है कि इस बार भारत का पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। डेढ़ सौ करोड़ की आबाद वाले और जल, थल, नभ से लेकर अंतरिक्ष पार करके चंद्रमा व मंगल तक अपनी ताकत का परचम फहराने वाले भारत को चंद आतंकी या चंद गद्दार झुका सके यह संभव ही नहीं है। भारत को चाहिए कि अपनी पूरी ताकत के साथ खून बहाने वालों को खून का बदला खून से ले।
हर शख्स को यह याद रखना चाहिए कि हर शख्स बने दीवारे वतन, हर फर्द हिमालय बन जाए, हर औरत हो गंगा-जमुना, हर मर्द हिमालय बन जाएं। गर्म हो अंगारे की तरह या सर्द हिमालय बन जाएं। दुश्मन के लिए बच्चा-बच्चा बेदर्द हिमालय बन जाए। पूरा देश एक जुट होकर जब खड़ा होगा तो इस्लामी आतंकवाद चाहे सीमा पर हो, चाहे समाज में हो ठंडा होगा ही।