दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन।

फिरोजपुर 17 दिसंबर {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

फिरोजपुर आश्रम में किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री किरन भारती जी ने प्रवचनों के माध्यम से बताया के अधिकांश व्यक्तियों के लिए जीवन समस्याओं ,विपदाओं ,चिंताओं आदि की एक श्रृंखला है। कुछ लोग एक ऐसे रामराज्य की प्रतीक्षा करते हैं जहां सुख ही सुख होगा दुख होगा ही नहीं। कुछ मृत्यु के बाद स्वर्ग में चिर सुख की बात जोहते रहते हैं। कुछ अपने भाग्य को दोष देते हैं।
प्रश्न है कि फिर जीवन में सांत्वना कहां खोजें ? अत्यंतिक अत्यंतिक दुख की निवृत्ति ,वेदांत के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। वेदांत का कहना है कि शुभ अशुभ वस्तुएं या परिस्थितियां नहीं , बल्कि हमारी भावनाएं होती हैं। जीवन की समस्या का कारण बाह्य जगत नहीं है। संसार ना अच्छा है , ना बुरा। शुभ अशुभ का यह संसार बाहर नहीं ,मन के अंदर है। सुख और दुख एक ही मन की दो अवस्थाएं हैं।
वेदांत द्वारा प्रतिपादित मुक्ति का सार है ब्रह्मज्ञान ।ब्रह्मज्ञान द्वारा चित शुद्ध या मन को शुभत्व की ओर अग्रसर किया जा सकता है। परंतु ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद यह पुरुषार्थ हमें स्वयं ही करना होगा इस अंतरिक ज्ञान से प्रदीप दिव्य दृष्टि हमें वस्तुओं को देखने का यही सही दृष्टिकोण प्रदान करती है। वर्तमान में जीना परिपक्व जीवन का लक्ष्य है ।अतीत का चिंतन और भविष्य के स्वप्न देखने से कोई लाभ नहीं होता ।जो बीत गया, वह वापस नहीं आएगा ।भविष्य का भी अभी कोई अता-पता नहीं ।अतः वर्तमान में जीने से हमें अपनी मानसिक कल्पनाओं के दास नहीं बनते अर्थात एक स्वपनवत जीवन नहीं जीते । महापुरुषों ने भी कहा है कि संबोधी प्राप्त करने के लिए सपने देखना बंद होना ही चाहिए। यह स्वप्न हीन अवस्था मात्र ब्रह्मा ज्ञान या आत्मिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हासिल हो सकती है ।ध्यान साधना स्वपन हीनता प्राप्त करने का उत्तम उपाय है
साध्वी जी ने बताया जिस प्रकार एक जागृत पुरुष वही है जो अपने भी लक्ष्य को जान लेता है। स्टिक आचार्यों ने ब्रह्म ज्ञान संबंधी ध्यान साधना को आत्मसाक्षात्कार का वैज्ञानिक साधन बताया था। इस युग में भी आत्मसाक्षात्कार का एकमात्र उपाय है ब्रह्म ज्ञान। अंत में साध्वी बहनों ने सामधुर भजनों का गायन किया।

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