दिव्या ज्योति जागृती संस्थान की ओर से साप्ताहिक सत्संग कार्यकर्म का किया गया आयोजन
(पंजाब) फिरोजपुर 20 जनवरी [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]=
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के परम शिष स्वामी चंद्रशेखर जी ने अपने विचारों में संगत को बताया कि इतिहास गवाह है कि जिसने अपना प्रेम ईश्वर से जोड़ लिया, उसका जीवन नवीनता के सांचे में ढल गया। ईश्वर प्रेम के मार्ग पर चलते हुए उस व्यक्ति के कदम पूर्णतः रचनात्मक एवं लाभकारी सिद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, तुलसीदास जी, जो अपनी पत्नी से प्रेम करते थे, अपनी पत्नी को देखे बिना एक क्षण भी नहीं रह पाते थे। इस कारण वे उपहास का पात्र बने, लेकिन जब संत नरहरिदास की कृपा से वे प्रभु की ओर मुड़े, तभी उन्हें सच्चे प्रेम की अनुभूति हो सकी। भगवान के प्रेम के मार्ग पर चलकर वही तुलसीदास जी सभी की दृष्टि में आदरणीय बन गये। महान गोस्वामी तुलसीदास जी को रामचरितमानस के रचयिता के रूप में भी जाना जाता है। एक अन्य उदाहरण में स्वामीजी ने राजा अशोक का उल्लेख किया। उनका प्रेम राज्य, धन और संपत्ति से था! अपनी अंहकार में उसने न जाने कितनी हत्याएं कीं, कई लाख महिलाओं की जिंदगी बर्बाद कर दी, कितने बच्चों को अनाथ कर दिया और फिर एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन गया। उसके चरणों में धन जमा हो गया। लेकिन अंदर ही अंदर वह दुखी था, बेचैन था। तभी एक दिन उसके जीवन में एक बौद्ध भिक्षु आया। उन्होंने अपना प्रेम संसार से हटाकर रचयिता अर्थात ईश्वर की ओर मोड़ दिया। भगवान से प्रेम करने के बाद वही ‘हिंसक’ अशोक ‘महान’ अशोक कहलाया। इसीलिए ऋषियों ने चेतावनी दी है- हे मनुष्य, अपने प्रिय को चुनने में गलती मत करना। संसार को अपने प्रेम की वस्तु मत बनाओ। अन्यथा यह प्रेम मछली के जल, जल के कमल और कीट के दीपक के समान ही दुःख देगा। यदि प्रेम की रस्सी बांधनी है तो ऐसे बांधो जैसे बीज का मिट्टी से , कुम्हार का मिट्टी से। ऐसा प्रेम केवल ईश्वर से जुड़ने से ही मिल सकता है।
साधवी कृष्णा भारती जी ने धर्मसभा को समझाया कि हमारे धार्मिक ग्रंथ हमें एक ईश्वर से प्रेम करने की प्रेरणा देते हैं। संसार का प्रेम स्वार्थी हो सकता है लेकिन ईश्वर का प्रेम निःस्वार्थ है। ईश्वर से प्रेम करने के लिए ईश्वर दर्शन आवश्यक है, जो पूर्ण संत की शरण में जाकर ही संभव है। इसलिए मनुष्य को पूर्ण संत की शरण में जाकर शाश्वत प्रेम प्राप्त करना चाहिए। अंत में साध्वी दीपिका भारती जी ने सुमधुर भजन गाए।