श्रावण मास की शिवरात्रि शुभ और मंगलकारी है: डॉ. मिश्रा

कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 21 जुलाई : हार्मनी ऑकल्ट वास्तु जोन के अध्यक्ष और श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश ज्योतिष आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि
श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को सावन शिवरात्रि या श्रावण शिवरात्रि कहा जाता है।
श्रावण मास में देवों के देव महादेव और जगत जननी मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। इसलिए श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
प्रत्येक वर्ष में एक महाशिवरात्रि और 11 शिवरात्रियां होती हैं, जिन्हें मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। मासिक शिवरात्रि हर माह में एक बार आती है। इस तरह से 12 शिवरात्रि होती हैं। प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर शिवरात्रि मनाई जाती है, जिसे मासिक शिवरात्रि कहा जाता है। मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर विशेष कृपा करते है।
पंचांग के अनुसार सावन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 23 जुलाई 2025 को सुबह 4:39 बजे से होगी आर्द्रा नक्षत्र और मिथुन राशि के चंद्रमा में होगी और यह तिथि अगले दिन 24 जुलाई को रात 2:28 बजे तक रहेगी। सूर्य उदय तिथि के अनुसार सावन शिवरात्रि का व्रत 23 जुलाई, बुधवार को रखा जाएगा।
विशेष पूजा और मुहूर्त समय : विशेष पूजा समय : प्रदोष काल में पूजा समय शाम 7 बजकर 17 मिनट से रात 9 बजकर 53 मिनट तक है।
दूसरे प्रहर में पूजा समय रात 9 बजकर 53 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 28 मिनट तक है।
तीसरे प्रहर में पूजा समय रात 12 बजकर 28 मिनट से देर रात 3 बजकर 3 मिनट तक है।
विशेष मुहूर्त समय :
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 4 बजकर 15 मिनट से 4 बजकर 56 मिनट तक।
विजय मुहूर्त – दोपहर 2 बजकर 44 मिनट से 3 बजकर 39 मिनट तक।
गोधूलि मुहूर्त – शाम 7 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 38 मिनट तक
*निशिता मुहूर्त – रात्रि 12 बजकर 7 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक।
श्रावण मास की शिवरात्रि पर व्रत और पूजन विधि :
भगवान शिव की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें ।
यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें, तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें।
पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें।
अब स्वस्ति-पाठ करें.
स्वस्ति-पाठ-‘स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:,स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:,स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि,स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु.’
इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।
इसके बाद हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।
व्रत कैसे करें :
सारा दिन निराहार रहें ,मन वचन कर्म से पवित्र रहे।
शाम से ही भगवान शिव की पूजा के लिए पूर्ण सामग्री तैयार करें।
3.रात को भगवान शिव की चार प्रहर की पूजा बड़े भाव से करने का विधान है।
प्रत्येक प्रहर की पूजा के पश्चात अगले प्रहर की पूजा में मंत्रों का जाप दोगुना, तीन गुना और चार गुना करें।
किसी की निन्दा चुगलियों ,ईर्ष्या द्वेष से बचें। शुभ मङ्गल भावना सम्पूर्ण विश्व के लिए रखें।
यदि आपने सदगुरू से ओंकार दीक्षा और ध्यान विधि सीखी है तो उसको श्रद्धापूर्वक कीजिए।
अन्यथा इस विशेष मंत्र का जाप करें श्रद्धा पूर्ण जाप करें। और आरती श्रद्धा और भक्ति भाव से कीजियेगा।
‘ओम शिवाय’ नमः,
‘ओम रिम सांब सदा शिवाय नम:’,
‘ओम ईशानाय नम:’,
‘ओम तत्पुरुषाय नम:’