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संस्कृत देववाणी है, शब्द नाद और प्रकाश है : प्रो. वेदालंकार

संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि आयुर्वेद का आधार : कुलपति प्रो. धीमान।
श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में संस्कृत सप्ताह महोत्सव का आयोजन।

कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 5 अगस्त : आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी से मिलकर बना ‘आयुष’ शब्द एक मधुर और गहन अर्थ वाला संयोग है, जिसमें संपूर्ण प्राकृतिक चिकित्सा समाहित है। शब्द नाद है, शब्द ज्योति है और शब्द प्रकाश है, क्योंकि यह चेतना और संस्कार का माध्यम होते हैं। यह विचार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत, पाली एवं प्राकृत विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. भीम सिंह वेदालंकार ने व्यक्त किए।
वे श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के संहिता एवं सिद्धांत स्नातकोत्तर विभाग द्वारा आयोजित संस्कृत सप्ताह महोत्सव में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। कार्यक्रम की शुरुआत भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर की गई। इस अवसर पर कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान, कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर, प्राचार्य प्रो. आशीष मेहता, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. जीतेश कुमार पंडा, संहिता एवं सिद्धांत विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्ण कुमार और आर एंड आई निदेशक प्रो. देवेंद्र खुराना ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रो. दीप्ति पराशर, प्रो. रवि राज, प्रो. नीलम कुमारी, प्रो. सीमा रानी, डॉ. सुरेंद्र सहरावत, प्रो. मनोज तंवर, डॉ. आशीष नांदल, डॉ. अनामिका, डॉ. सुखबीर, डॉ. ममता, संस्कृत क्लब सचिव डॉ. सीमा रानी, डॉ. प्रीति समेत अन्य शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।
संस्कृत के बिना भारत और भारत के बिना संस्कृत अधूरी: प्रो. वेदालंकार।
प्रो. वेदालंकार ने कहा कि संस्कृत एक वैज्ञानिक और देववाणी भाषा है, जिसमें हर शब्द का गहरा अर्थ और उच्चतम स्तर की व्याकरणिक शक्ति होती है। उन्होंने बताया कि उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे और उन्होंने ऐसे शब्दों पर निबंध लिखा जो बिना होठों को छुए बोले जा सकते थे। उन्होंने कहा कि यह वही भाषा है जिसमें एक ही वाक्य को आगे से पढ़ने पर महाभारत और पीछे से पढ़ने पर रामायण बन जाती है। संस्कृत के बिना भारत अधूरा है और भारत के बिना संस्कृत। उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि शब्दों का प्रयोग सोच-समझकर करें, क्योंकि यह केवल बोलने के माध्यम नहीं, बल्कि चेतना और संस्कृति के वाहक हैं। उन्होंने क्षेत्र से संन्यास लेकर देवभाषा की रक्षा करना का संकल्प लिया हुआ है। वे रोजाना 5 से 6 घंटे चिंतन करके संस्कृत भाषा पर गहन अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कई शब्दों को एक शब्द में सिमटने की ताकत मात्र संस्कृत भाषा में ही है।
हमारी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया : प्रो. भीम सिंह।
मुख्य वक्ता प्रो. भीम सिंह वेदालंकार ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत ने भारत पर शासन करने के लिए सबसे पहले हमारी भाषा और संस्कृति पर हमला किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने पहले भारत के उच्च पदों को समाप्त किया, फिर हमारी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन कर दिए, ताकि भारतीयों की मानसिकता गुलामी की ओर मोड़ दी जाए। उन्होंने युवा पीढ़ी से अपील करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि देश की संस्कृति और भाषाई विरासत को बचाने का बीड़ा उठाया जाए। उन्होंने कहा कि जीवन में कोई भी लक्ष्य पाने के लिए व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है, और इसके लिए मानसिक स्थिरता के साथ-साथ भाषा का व्यवहारिक ज्ञान अत्यंत आवश्यक है।
संस्कृत के बिना आयुर्वेद अधूरा : प्रो. धीमान
कार्यक्रम में कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि संस्कृत, सनातन और आयुर्वेद– ये तीनों एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं, और इनका संरक्षण वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संस्कृत के बिना आयुर्वेद अधूरा है। यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि आयुर्वेद के शास्त्रीय ज्ञान की आत्मा है। संस्कृत भाषा से डरने की बजाय उसे समझने और आत्मसात करने की जरूरत है, क्योंकि जब तक संस्कृत नहीं समझी जाएगी, तब तक अच्छा वैद्य बनना संभव नहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि आयुर्वेद का आधार है। यदि हम संस्कृत को नहीं समझेंगे, तो आयुर्वेद के गूढ़ रहस्यों तक भी नहीं पहुंच पाएंगे। आज की युवा पीढ़ी के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी जड़ों से जुड़ें और संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा को आत्मगौरव और आत्मबल के रूप में अपनाएं।

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