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कूल्हे की गल चुकी थी हड्डी,व्हीलचेयर पर आया मरीज,पैरों पर लौटा

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी दूरभाष – 9416191877

श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में आयुर्वेदिक चिकित्सा ने असंभव को किया संभव।
एवीएन से पीड़ित अमित बिस्तर से उठने में था असमर्थ, अब पूरी तरह स्वस्थ।

कुरुक्षेत्र : कभी बिस्तर से उठना भी जिसके लिए नामुमकिन था, आज वही अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा है। जबकि चिकित्सकों ने अमित को ‘कूल्हा बदलने’ की सलाह दी थी। यह किसी चमत्कार से कम नहीं, बल्कि आयुर्वेद की शक्ति का जीवंत प्रमाण है। श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेदिक अस्पताल में उपचार के बाद पानीपत के गांव खोदपुरा निवासी अमित कुमार ने न केवल चलना-फिरना शुरू किया,बल्कि खुद को पूरी तरह स्वस्थ महसूस कर रहा है। अमित को साल 2021 में कमर में दर्द होना शुरू हुआ, जो धीरे-धीरे बढ़ता गया। उसने कई जगह इलाज कराया, लेकिन कोई आराम नहीं मिला। दर्द कूल्हे से होते हुए घुटनों तक पहुंचने लगा। साल 2023 में कराई गई एमआरआई में पता चला कि दोनों कूल्हे की हड्डी में एवीएन नाम की बीमारी है।
सालों से दर्द से जूझ रहे थे अमित।
अमित ने बताया कि करनाल के एक प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ से उसने कूल्हे का ऑपरेशन (फिब्लरग्राफटिंग) करवाया और करीब 8 माह तक बिस्तर पर रहा, लेकिन फिर से दर्द शुरू हो गया। दोबारा जांच में चिकित्सक ने कूल्हा बदलने की सलाह दी। वह आईबीएस (इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) से भी ग्रसित था, जिसकी वजह से उसे दिन में 7–8 बार शौच जाना पड़ता था और उनका वजन लगभग 20–30 किलोग्राम कम हो गया। अमित ने बताया कि वह चलने-फिरने में असमर्थ था, बिस्तर से उठना भी मुश्किल था। जिंदगी नर्क बन गई थी। इसी दौरान किसी रिश्तेदार ने उन्हें श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के पंचकर्म विभाग के डॉ. राजा सिंगला के बारे में बताया। मार्च 2024 में परिजन उन्हें व्हीलचेयर पर आयुर्वेदिक अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां डॉ. सिंगला ने उसका इलाज शुरू किया।
आयुर्वेदिक उपचार से हुआ सुधार: डॉ. राजा सिंगला।
आयुष विश्वविद्यालय के पंचकर्म विभाग के प्रोफेसर एवं आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजा सिंगला ने बताया कि मरीज की एमआरआई रिपोर्ट में ग्रेड-2 और ग्रेड-3 एवीएन की पुष्टि हुई। एवीएन एक गंभीर स्थिति है, जिसमें कूल्हे की हड्डी में खून की सप्लाई रुक जाती है, जिससे हड्डी को ऑक्सीजन और पोषण नहीं मिल पाता और वह गलने लगती है। साथ ही मरीज को दिन में बार-बार शौच जाने की भी दिक्कत थी। मरीज को आयुर्वेदिक औषधियों के साथ पंचकर्म चिकित्सा दी गई,जिसमें मुख्य रूप से कटि बस्ति, पत्र पिंड स्वेदन, बस्ति चिकित्सा शामिल थीं। लगातार उपचार और आहार- संयम से कुछ महीनों में मरीज की चलने-फिरने की क्षमता पूरी तरह लौट आई है। अब अमित न केवल उठ-बैठ सकते हैं, बल्कि सामान्य रूप से चल-फिर भी रहे हैं।

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