दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने करवाया विशेष आयोजन–स्वर्णिम युग की ओर। ब्रह्म चेतना से अनुप्राणित साधक ही चरैवेति का उद्घोष कर स्वर्णिम युग में प्रवेश पाता है:- स्वामी नरेंद्रानंद जी

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने करवाया विशेष आयोजन–स्वर्णिम युग की ओर। ब्रह्म चेतना से अनुप्राणित साधक ही चरैवेति का उद्घोष कर स्वर्णिम युग में प्रवेश पाता है:- स्वामी नरेंद्रानंद जी।
(पंजाब (फिरोजपुर 18 मार्च {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा ब्रह्म ज्ञान से दीक्षित संकल्पवान सृजन साधकों के लिए स्थानीय अमर पैलेस में स्वर्णिम युग की ओर नामक विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान की ओर से श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी नरेंद्रानंद जी ने उपस्थित साधक जनों को आध्यात्मिक प्रवचनों से लाभान्वित किया। उन्होंने एक साधक के गुणों का व्याख्यान करते हुए कहा कि एक साधारण मनुष्य साधक की उपाधि को तभी प्राप्त करता है जब वह अहंकार रहित भाव से श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ संत की शरणागति होकर उनसे ब्रह्मज्ञान की दीक्षा प्राप्त करके निरंतर गुरू आज्ञा में रहते हुए ध्यान साधना की गहराइयों में उस परमात्मा के प्रकाश स्वरूप से जुड़ता है। स्वामी जी ने आगे विस्तारपूर्वक समझाते हुए कहा कि सहजता से ही अग्नि का संग करने से उष्णता प्राप्त होती है और जल का संग करने से शीतलता मिलती है इसी प्रकार एक पूर्ण गुरू का संग करने से जो सद्गुण हमारे व्यक्तित्व में प्रकट होते हैं वे ही साधक के ऐसे गुण हैं जो हमारे जीवन को मूल्यवान और विलक्षण बनाते हैं। मिट्टी में शीतलता के गुण तभी आते हैं जब वह कुम्हार के हाथों में आकार लेकर अग्नि में तपाई जाती है इसी प्रकार हमारे भीतर भी साधक के गुण एक गहन प्रक्रिया से गुज़रने के दौरान ही प्रकट होते हैं। प्रेम, धैर्य, संयम, पवित्रता, सहिष्णुता और विनम्रता जैसे आभूषणों से गुरू अपने साधक का श्रृंगार करते हैं। ये गुण स्वतः ही एक साधक के आचरण में उतर जाते हैं उसके लिए उसे कुछ अन्यथा प्रयास नहीं करना पड़ता । केवल मन, वचन, कर्म से गुरु के श्री चरणों में समर्पण करके निरंतर गुरू आज्ञा में चलते रहना है। जब एक साधक निरंतर ध्यान साधना करता है तब गुरू उसके प्रारब्ध और संचित कर्मों पर कार्य करता है। गुरू अपने साधक के पुरुषार्थ को आधार बनाकर उसके सभी संचित कर्मों को नष्ट कर देता है और उसके प्रारब्ध की पीड़ाओं को कम करने के लिए उसे सेवा कार्य में लगाता है। विनम्रता का गुण तो साधक के भीतर उसी क्षण प्रकट हो जाता है जब वह अपना अहंकार त्यागकर गुरु की शरण में आता है। गुरू उसके व्यवहार में विपरीत परिस्थितियों के द्वारा धैर्य का गुण भरते हैं। अपने मन और बुद्धि का त्याग करके गुरु आज्ञा में चलते हुए एक साधक संयम का गुण धारण करता है और गुरु के तपोबल की दिव्य तरंगों का स्पर्श प्राप्त करके साधक का संपूर्ण जीवन पवित्र एवं पावन हो जाता है। यह गुरू के संग की महिमा है कि वह काक प्रवृत्ति से हंस प्रवृत्ति बनाने में सदैव सामर्थ्यवान हैं। सत्संग कार्यक्रम में साध्वी ऋचा भारती, भाव अर्चना भारती व चित्रा भारती ने सुमधुर भजनों का गायन करके समस्त साधक वर्ग को कृतार्थ किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ विधिवत वेद मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। उत्साह से पूरित हो सभी साधकों ने कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की।
कार्यक्रम में श्री गंगानगर के प्रमुख समाजसेवी विजय गोयल, राजकुमार जोग, डॉ दर्शन आहूजा, अमरनाथ अरोड़ा,राजकुमार जैन, सौरभ जैन, डॉ कुसुम जैन ने श्री गुरु महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त किया।
साध्वी सोनिया भारती जी ने सभी साधकों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।