उत्तराखंड स्पीकर समय पर फैसला नहीं ले तो लोकतंत्र को होगा नुकसान, सुप्रीम कोर्ट

सागर मलिक
*सुप्रीम कोर्ट की स्पीकरों को सख्त चेतावनी;तीन महीने में हो फैसला
दल-बदल कानून उल्लंघन- स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी तीन साल में नहीं ले सकी निर्णय
निर्दल उमेश कुमार का लंबित सदस्यता प्रकरण- स्पीकर खण्डूड़ी पर बढ़ा नैतिक दबाव*
नई दिल्ली/देहरादून। देश की सर्वोच्च अदालत ने विधायकों और सांसदों की अयोग्यता याचिकाओं में समय-बद्धता न बरतने वाले स्पीकरों की प्रक्रिया पर कड़ी नाराज़गी जताई है।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई एवं जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच की तल्ख टिप्पणी और स्पीकर को तीन महीने में निर्णय लेने के आदेश के बाद हलचल मच गई।
सुप्रीम कोर्ट ने ये तीखी टिप्पणी गुरुवार 31 जुलाई 2025 को की। सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर को दस BRS विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं का निर्णय तीन महीने के भीतर लेने का निर्देश देते हुए, गम्भीर विलंब और लोकतंत्र पर संभावित खतरों को लेकर स्पष्ट टिप्पणी कर सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया।
दक-बदल कानून के उल्लंघन का एक चर्चित मसला उत्तराखण्ड से भी जुड़ा है। इस मुद्दे पर स्पीकर ने तीन महीने ही नहीं बल्कि तीन साल से ज्यादा निकाल दिए। लेकिन कोई फैसला नहीं दिया।
उत्तराखण्ड की स्पीकर तीन साल में नहीं ले सकी कोई फैसला
इस निर्णय के बाद उत्तराखंड के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की तीन साल से लंबित सदस्यता का मसला नये सिरे से गर्मा गया है। मार्च 2022 में चुनाव जीतने के बाद निर्दलीय विधायक एक राजनीतिक दल में शामिल हो गए।
दल बदल कानून के उल्लंघन के इस मामले को लेकर बसपा नेता (अब भाजपा में) 26 मई 2022 को विधानसभा में सम्पूर्ण तथ्यों के साथ एक याचिका पेश कर उमेश कुमार की सदस्यता रद्द करने की मांग की।
अप्रैल 2022 में उत्तराखंड जनता पार्टी में शामिल हुए निर्दलीय विधायक उमेश कुमार
इस मसले पर स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी ने नवंबर 2022 में पहले उमेश कुमार को और फिर 7 मई 2025 को याचिकाकर्ता रविंद्र पनियाला को नोटिस दिया। लेकिन तीन साल से अधिक समय बीतने के बाद खानपुर से निर्दल विधायक उमेश कुमार की सदस्यता पर चुप्पी साधे रही।
इधऱ, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया कि राजनीतिक दलबदल लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। यदि इसे समय पर नहीं रोका गया, तो लोकतंत्र की अस्थिरता का जोखिम बढ़ता है ।
विधायक उमेश कुमार ने सोशल मीडिया में अखबारों की न्यूज कटिंग चस्पा की थी
स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन यदि वे लाल-फीताशाही या देरी अपनाते हैं, तो न्यायालय समीक्षा के दायरे में आते हैं।
कोर्ट ने संसद को संविधान संशोधन के माध्यम से प्रणाली सुधारने की भी सलाह दी है ताकि इस तरह की अयोग्यता याचिकाएँ स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से न्यायिक रूप से निपट सकें।
लेकिन बहुचर्चित व विवादास्पद निर्दलीय विधायक उमेश कुमार के बाबत स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी का मौन कई सवाल खड़े कर रहा है।
31 जुलाई 2025 के सुप्रीन कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद उत्तराखंड की स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी अगस्त में होने वाले विधानसभा सत्र से पहले निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की सदस्यता पर कब तक फैसला लेती है,यह भी देखने वाली बात होगी।
26 मई 2022-विधानसभा में याचिका पेश करने के बाद रविन्द्र पनियाला
स्पीकर ने विस भर्ती घोटाले में लिया था तुरन्त फैसला
विधानसभा के बहुचर्चित भर्ती घोटाले में स्पीकर ने तय समय सीमा के अंदर जॉच कर 250 तदर्थ लोगों को नौकरी से निकाल दिया था। लेकिन उमेश कुमार के मुद्दे पर खामोश रहीं।
इस बीच, यह चर्चा भी आम रही कि सत्तारूढ़ दल से जुड़े कुछ ताकतवर लोग निर्दलीय उमेश कुमार को संरक्षण दे रहे हैं।
बहरहाल, विधानसभा के डिप्टी सेक्रेटरी हेम पंत ने स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी के निर्देशों का हवाला देते हुए 7 मई 2025 को भाजपा नेता व याचिकाकर्ता रविन्द्र पनियाला व निर्दलीय विधायक को शपथ पत्र के साथ मौखिक व दस्तावेजी सबूत पेश करने को कहा है। विस सचिवालय ने यह पत्र अंग्रेजी में जारी किया है।
तीन साल बाद 7 मई 2025 को जारी किया नोटिस
पूर्व में स्पीकर ले चुके हैं तत्काल फैसला
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में दल बदल से जुड़े पुराने मामलों का तत्कालीन स्पीकर ने कुछ महीनों /दिनों में ही निस्तारण कर दिया था। 2021-22 में दल बदल कर भाजपा में जाने वाले विधायक प्रीतम पंवार, राजकुमार व रामसिंह कैड़ा को विधायकी से हाथ धोना पड़ा था।
इससे पूर्व 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए नौ विधायकों को तत्कालीन स्पीकर गोविन्द सिंह कुंजवाल ने अयोग्य घोषित कर दिया था। जबकि 2022 में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होते ही यशपाल आर्य व संजीव आर्य ने तत्काल विधायकी से इस्तीफा दे दिया था। 2024 में कांग्रेस विधायक राजेन्द्र भंडारी भाजपा में शामिल हुए। उनकी भी विधायकी चली गयी।
क्या है तेलांगना का मामला
पेचीदा मामला: तेलंगाना में 10 BRS विधायक, जिन्होंने विधानसभा चुनाव BRS के टिकट पर जीते थे, बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। उनके खिलाफ दलबदल से अयोग्यता याचिकाएँ स्पीकर के सामने लंबित रहीं, बिना कोई निर्णय लिए 7 महीने से अधिक समय तक निरुद्ध परिवर्तन नहीं हुआ ।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई एवं जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा:
अगर समय रहते दलबदल को नहीं रोका गया, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकता है ।
अदालत ने कहा कि स्पीकर का निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन वह इससे पूरी तरह मुक्त (judicially reviewable) नहीं होता—न्यायिक समीक्षा संभव रहती है, विशेषकर जब विलंब और पक्षपात दिखाई दे।
सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय विधानसभा स्पीकर को त्रैमासिक (3 महीने) के भीतर निर्णय लेने का ultimatum भी दिया, अन्यथा यह स्थिति ‘operation successful, patient dead’ (मामला ठीक हुआ, लेकिन मरीज मर गया) की तरह बन जाएगी ।
संसद को सिफ़ारिश
कोर्ट ने दसवीं अनुसूची के प्रावधानों पर पुनर्विचार के लिए संसद से आग्रह किया कि क्या स्पीकर को यह जिम्मेदारी सौंपना पर्याप्त है।
सुझाव दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट से रिटायर जज या हाईकोर्ट के रिटायर मुख्य जस्टिस की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण बनाया जाना चाहिए ताकि अयोग्यता याचिकाओं की निष्पक्ष और समयबद्ध जांच हो सके।
26 मई 2022 को बसपा प्रत्याशी ने दल बदल कानून के उल्लंघन पर यह याचिका विधानसभा में पेश की थी। न्यूज लिंक क्लिक करें–
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