पति-पत्नी के बीच समर्पण, प्यार और अटूट विश्वास का पर्व करवा चौथ : डॉ. सुरेश मिश्रा।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
कुरुक्षेत्र : कॉस्मिक एस्ट्रो व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के अध्यक्ष ज्योतिष व वास्तु विशेषज्ञ डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। पति-पत्नी के बीच समर्पण, प्यार और अटूट विश्वास का त्यौहार करवा चौथ इस वर्ष 1 नवंबर , बुधवार को शिव योग में मनाया जाएगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानि करवा चौथ के दिन महिलाऐं यह व्रत अपने पति के प्रति समर्पित होकर उनके लिए उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं जन्म- जन्मांतर तक पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए मंगल कामना करती हैं। करवा चौथ का अर्थ है,’करवा’ यानि कि मिट्टी का बर्तन व ‘चौथ’ यानि प्रथम पूज्य गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। इस दिन मिटटी के करवा में जल भरकर पूजा में रखना बेहद शुभ माना गया है और इसी से रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।
कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और रात को चांद देखकर उसे अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।मां पार्वती उन सभी महिलाओं को सदा सुहागन होने का वरदान देती हैं जो पूर्णतः समर्पण और श्रद्धा विश्वास के साथ यह व्रत करती हैं। पति को भी चाहिए कि पत्नी को लक्ष्मी स्वरूप मानकर उनका आदर-सम्मान करें क्योंकि एक दूसरे के लिए प्रेम और समर्पण भाव के बिना यह व्रत पूरा नही है।
करवा चौथ को चन्द्रमा उदय का समय :
चंद्रमा इस पूजा और व्रत के केन्द्र में हैं। व्रत रखने वाली महिलाएं चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही अपने जीवन साथी के हाथ से जल ग्रहण करती हैं। चंद्रोदय का समय रात्रि 8 बजकर 9 मिनट पर है।
करवा चौथ व्रत की विशेष विधि : भगवान की पूजा में श्रद्धा और विश्वास अति आवश्यक है I
करवा चौथ के व्रत और पूजन की उत्तम विधि यह है जिससे आपको व्रत का कई गुना फल मिलेगा : सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें।
मिठाई, फल, सेंवई और पूड़ी की सरगी ग्रहण कर व्रत शुरू करें।
संपूर्ण शिव परिवार की स्थापना करें।
श्री गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं।
भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें।
उनके सामने मोगरा या चन्दन की अगरबत्ती और शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
मिटटी के करवे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं।
करवे में दूध, जल और गुलाब जल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार अवश्य करें जिससे सौंदर्य बढ़ता है।
इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए।
कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए।
पति की दीर्घायु की कामना कर पढ़ें यह मंत्र : ‘नमस्त्यै शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभा,
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।’
करवे पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवे पर हाथ घुमाकर अपनी सासू जी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। 13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा या करवा अलग रख लें।
विशेष : चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस- पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।