केयू शिक्षक डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज का शोध अमेरिकी जर्नल में शीर्ष 10 सर्वाधिक उद्धृत लेखों में शामिल

केयू शिक्षक डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज का शोध अमेरिकी जर्नल में शीर्ष 10 सर्वाधिक उद्धृत लेखों में शामिल।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
कैडमियम के स्वास्थ्य पर होने वाले हानिकारक प्रभावों पर किया शोध
कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने दी बधाई।
कुरुक्षेत्र, 31 मार्च : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के शिक्षक डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज द्वारा कैडमियम के स्वास्थ्य पर होने वाले हानिकारक प्रभावों पर किया गया शोध अमेरिकी जर्नल के शीर्ष 10 सर्वाधिक उद्धृत लेखों में शामिल किया गया है। कैडमियम आमतौर पर औद्योगिक, सिगरेट के धुएं, दूषित भोजन, पानी और कुछ उर्वरकों और कीटनाशकों में पाया जाता है। यह समय के साथ शरीर में जमा हो सकता है, खासकर गुर्दे और यकृत में, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। कैडमियम विषाक्तता तब होती है जब शरीर अत्यधिक मात्रा में कैडमियम के संपर्क में आता है, जो एक भारी धातु है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।
इस अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज को बधाई देते हुए कहा कि केयू गुणवत्ता एवं उत्कृष्ट शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा शोधकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन, उत्कृष्ट योगदान की मान्यता, सुव्यवस्थित परियोजना अनुमोदन, पेटेंट- फाइलिंग समर्थन और इनक्यूबेशन, स्टार्टअप और नवाचार केंद्रों की स्थापना की गई है। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो. अनीता भटनागर ने डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज को इस उपलब्धि बधाई दी।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग के डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज ने बताया कि बढ़ते औद्योगीकरण और क्रांतिकारी कृषि क्षेत्रों के कारण पर्यावरण विषाक्त पदार्थों के दूषितकरण के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आधुनिक कृषि पद्धतियां व्यापक श्रेणी के रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के व्यापक उपयोग से जुड़ी हैं, जबकि औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में भारी धातुएं, अपशिष्ट निराकरण, पेंट और वस्त्र और अन्य सामग्री शामिल है। सीसा, कैडमियम, और पारा भारी धातुओं की मानव शरीर में कोई जैविक भूमिका नहीं है, फिर भी उनका संचय सामान्य शारीरिक कार्यों को बाधित करता है, जिससे हेपेटोटॉक्सिसिटी, नेफ्रोटॉक्सिसिटी, इम्यूनोटॉक्सिसिटी और प्रजनन संबंधी विकार होते हैं। उन्होंने बताया कि महिला प्रजनन क्षमता विशेष रूप से खतरे में है, विषाक्त पदार्थ पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) और समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता (पीओएफ) जैसी स्थितियों का कारण हैं, इसकी लंबी जैविक अर्धायु और धीमी उत्सर्जन के परिणामस्वरूप जैवसंचय होता है, जिससे गुर्दे, यकृत और प्रजनन प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण अंगों को गंभीर क्षति होती है।
गौरतलब है कि प्रतिष्ठित शोधकर्ता डॉ. भारद्वाज के 70 से अधिक शोध पत्र प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं, आठ पेटेंट प्राप्त हुए हैं। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। उनके योगदान से वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक अनुसंधान में केयू की प्रतिष्ठा को गौरवान्वित किया है।