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लद्दाख घटनाक्रमअंग्रेजी शासन द्वारा जनजातीय समाज को शेष समाज से विलग रखने का गहरा बौद्धिक प्रपंच : विकास सारस्वत

‘जनजातीय समाज और लद्दाख प्रकरण’ पर विचार गोष्ठी का आयोजन।

कुरुक्षेत्र,संजीव कुमारी 13 अक्तूबर : विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान एवं पंचनद शोध संस्थान के कुरुक्षेत्र नगर अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में संस्कृति भवन में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। ‘जनजातीय समाज और लद्दाख प्रकरण’ विषयक गोष्ठी में विषय प्रस्तोता सुप्रसिद्ध स्तंभ लेखक विकास सारस्वत ने लद्दाख प्रकरण को जनजातीय समाज के साथ अलगाव बनाए रखने के अंग्रेजी शासन के गहरे षडयंत्र को व्यापक संदर्भ में प्रस्तुत किया। अतिथि परिचय एवं विषय की भूमिका रखते हुए पंचनद के उपाध्यक्ष डॉ. ऋषि गोयल ने कहा कि आदिवासी समाज एवं समुदाय के विषय में संवैधानिक विरासत जो हमें प्राप्त हुई है और उस पर जो मुद्दे खड़े हुए हैं, इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण के कुछ पहलू भी दिखाई देते हैं, लेकिन गहराई से इस पर विचार करें तो भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के मार्ग में वह विधान किस प्रकार से बाधक हैं, इस विषय को लेकर विचार गोष्ठी का रूप दिया गया है। गोष्ठी का संचालन अध्ययन केंद्र के संयोजक डॉ. सुमंत गोयल ने किया। आभार ज्ञापन विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के प्रबंधक सुधीर कुमार ने किया।
विकास सारस्वत ने गोष्ठी में आगे कहा कि अंग्रेजी शासन ने भविष्य में अपने लिए क्राउन कालोनीज बनाकर रखने के लिए नृवंशविज्ञान के सिद्धांतों का कुत्सित उपयोग किया और जनजातीय समाज को शेष समाज से विलग रखने के लिए गहरा बौद्धिक प्रपंच खड़ा किया। इसी प्रपंच के अंतर्गत जे.एच. हटन, आर्चर और जे.पी. मिल्स जैसे बौद्धिकों का सहारा लेकर वर्जित क्षेत्र, आंशिक वर्जित क्षेत्र, इनरलाइन परमिट जैसे प्रावधान लागू किए गए और बाद के वर्षों में वॉरियर एल्विन जैसे विशेषज्ञों ने उसे एक स्थायित्व प्रदान किया। संविधान सभा में जब इन्हीं प्रावधानों को पांचवीं और छठी अनुसूची के रूप में आगे बढ़ाने की योजना बनाई गई तो संविधान सभा के अनेक सदस्यों ने इसके भावी दुष्परिणामों से अवगत कराते हुए गंभीर चेतावनी दी थी और इन क्षेत्रों के वामपंथियों और मिशनरियों के लिए खुले चरागाह बनने की भविष्यवाणी की जो आज अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही है। संविधान सभा में इस विषय पर हुई डिबेट सभी के लिए पठनीय है। दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हम उन्हीं नीतियों के बंधक बनकर अलगाव की मानसिकता को पोषित कर रहे हैं।
विकास सारस्वत ने कहा कि लद्दाख के घटनाक्रम को भारत के शेष जनजातीय समाज से जुड़ी नीतियों के साथ जोड़कर ही समझने की आवश्यकता है। आज पर्यावरण संरक्षण के नाम पर स्थानीय और बाहरी के मध्य जो अभेद्य दीवार बना दी गई उससे राष्ट्रीय एकात्मता खंडित हो रही है। पर्यावरण संरक्षण के प्रावधान रूपी इस दीवार को गिराकर भी उतनी ही कठोरता से लागू किए जा सकते हैं। श्री सारस्वत ने सटीक उदाहरणों से स्पष्ट किया कि जिन्हें हम आज नागरिक सभ्यता का अंग समझते हैं उनका विकास भी कालक्रम से विभिन्न कबीलों से ही हुआ है और जिन्हें हम आज जनजातियां कह रहे हैं, भविष्य में विकास की धारा के साथ जुड़कर शेष समाज के साथ समरस होना ही उनकी भी वास्तविक नियति है, किन्हीं कृत्रिम प्रावधानों के आधार पर इस विकासक्रम को बाधित करना न तो उनके साथ न्याय है और न ही राष्ट्र की एकात्मता के लिए वांछनीय।
प्रस्तुति के बाद इस विषय पर एक विचारोत्तेजक परिचर्चा भी हुई। गोष्ठी में लगभग 70 प्रबुद्ध जनों की सहभागिता रही। इस अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, एन.आई.टी. के कई वरिष्ठ प्रोफेसर, कई महाविद्यालयों और शिक्षा विभाग हरियाणा से जुड़े प्राचार्य और शिक्षकगण, अधिवक्ता आदि सम्मिलित थे।
विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में आयोजित विचार गोष्ठी में संबोधित करते सुप्रसिद्ध स्तंभ लेखक विकास सारस्वत, साथ हैं पंचनद के उपाध्यक्ष डॉ. ऋषि गोयल एवं संस्थान के प्रबंधक सुधीर कुमार।

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