मनुष्य तो इच्छाओं का पुतला है : डा. स्वामी चिदानंद

मनुष्य तो इच्छाओं का पुतला है : डा. स्वामी चिदानंद।
सेंट्रल डेस्क संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी दूरभाष – 9416191877
स्वास्थ्य, धन, परिवार और यश की कामनाएं प्रत्येक मनुष्य में होती हैं।
ओडिशा भुवनेश्वर, 28 मार्च : देश के विभिन्न राज्यों सहित विश्व स्तर पर भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से उत्पन्न गीता का प्रचार प्रसार कर रहे अंतर्राष्ट्रीय गीता मिशन ओडिशा के अध्यक्ष संत डा. स्वामी चिदानंद ब्रह्मचारी ने कहा कि मनुष्य तो इच्छाओं का पुतला है। मनुष्य की व्यावहारिक जीवन में अनेक आकांक्षाएं रहती है। स्वास्थ्य, धन, परिवार और यश की कामनाएं प्रत्येक मनुष्य में होती हैं। उन्होंने कहा कि माता-पिता गुरु और मित्र का सहयोग प्राप्त कर व्यक्ति समाज में योग्यता हासिल करता है। स्वार्थ की भावना ही व्यक्ति को समाज और संगठन से दूर कर देती है। पद, रुपया और प्रतिष्ठा की लालसा मुष्य के विकास में सबसे बड़ी बाधा बनकर उसे आगे नहीं बढ़ने देती है। डा. स्वामी चिदानंद ने कहा कि इंसान को निहित स्वार्थ से मुक्त होना चाहिए। महात्मा गौतम बुद्ध कहते हैं कि स्वार्थ, शक, छल, नफरत, जोश ये पांच चीजें है, जो हमेशा मनुष्य के दरवाजे पर खड़ी रहती है। तनिक सी लापरवाही की गई तो यह चीजें मनुष्य के अंदर प्रवेश कर जाती है और उसे खोखला कर देती है। उन्होंने बताया कि स्वार्थ शब्द बना है-स्व अर्थात स्वयं से, यदि आपके स्वार्थ में केवल आप है तो आप वाकई स्वार्थी है और आपके स्वार्थ में आपका परिवार है तो आप परिवार्थी है। अगर आपके स्वार्थ में लोग शामिल है तो आप परोकार्थी है। संपूर्ण संसार आपके स्वार्थ में निहित है तो आप परमार्थी है। तो हमें अपने स्वार्थ से दूर नहीं जाकर उसका विस्तार करना चाहिए। डा. स्वामी चिदानंद ब्रह्मचारी ने कहा कि दूसरों के प्रति निस्वार्थ सेवा का भाव रखना ही जीवन में कामयाबी का मूल मंत्र है। निस्वार्थ भाव से की गई सेवा से किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है। हमें अपने आचरण में सदैव सेवा का भाव निहित रखना चाहिए , जिससे अन्य लोग भी प्रेरित होते हुए कामयाबी के मार्ग पर अग्रसर हो सके।
संत डा. स्वामी चिदानंद ब्रह्मचारी।