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संगीतमय स्वांग दम मस्त कबीरा ने जीता लोगों का दिल, सतीश कश्यप की प्रस्तुति के दिवाने हुए दर्शक

कला कीर्ति भवन में दम मस्त कबीरा स्वांग का हुआ सफल मंचन, कलाकारों ने लूटी वाहवाही।
कबीर के जीवन का हर रंग है दम मस्त कबीरा। बृज शर्मा।

कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 19 जुलाई : हरियाणा कला परिषद द्वारा प्रत्येक सप्ताह आयोजित होने वाली साप्ताहिक संध्या में शुक्रवार को डा. सतीश कश्यप के निर्देशन में हरियाणवी लोकनाट्य स्वांग दम मस्त कबीरा का मंचन किया गया। अपनी एक अलग शैली में प्रस्तुत स्वांग ने दो घण्टे तक कलाकारों को कबीर के जीवन के हर रंग से मिलाया। इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी बृज शर्मा बतौर मुख्यअतिथि पहुंचे। हरियाणा कला परिषद के कार्यालय प्रभारी धर्मपाल गुगलानी ने पुष्पगुच्छ भेंटकर मुख्यअतिथि बृज शर्मा का अभिनंदन किया। इस अवसर पर शिवकुमार किरमिच, दीपक शर्मा, रमेश सुखीजा आदि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम से पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की। मंच का संचालन विकास शर्मा ने किया। कबीर की वाणी से प्रारम्भ हुए स्वांग दम मस्त कबीरा में हिसार से आए डा. सतीश कश्यप और उनकी टीम ने भक्ति रस की ऐसी गंगा बहाई कि हर कोई उसमें गोते लगाता नजर आया। संवाद, संगीत, अभिनय और रोचकता का ऐसा अनूठा संगम देखने को मिला कि सभागार में उपस्थित एक भी दर्शक स्वयं को कबीर से जोड़े बिना नहीं रह पाया। स्वांग में कबीर के जन्म से कहानी को प्रारम्भ किया गया। जिसमें सुनाया कि कबीर का जन्म एक हिंदु परिवार में हुआ लेकिन उसका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार द्वारा किया गया। कबीर के बड़े होते ही कबीर को हिंदु और मुस्लिम दोनों समुदायों की प्रताड़ना सहनी पड़ी। धीरे-धीरे कबीर अध्यात्म की ओर बढ़ गया। कबीर जब गुरु रामानंद की शरण में आए तो उनका व्यक्तित्व भी दिव्य हो गया। केवल प्रभू का सिमरन करने से ही कबीर लोगों की मुसीबतें हल करने लगे। जिससे उनके आस-पास के लोगों को कबीर से ईर्ष्या होने लगी और उन्होंने सुल्तान लोधी के आगे कबीर को दण्डित करने की गुहार लगाई। सुल्तान ने भी कबीर को यमुना में डूबोने का हुक्म दे दिया। लेकिन कबीर के ईश्वर प्रेम और प्रभू में आस्था होने के कारण सुल्तान के सैनिक कबीर का कुछ न बिगाड़ सके। इससे सुल्तान की भी कबीर के प्रति आस्था बढ़ गई। लेकिन कबीर की मुश्किलें समाप्त नहीं हुई। कबीर के विरोधी कबीर के जीवन को समाप्त करने के लिए हर सम्भव प्रयास करते रहे। अंत में कबीर ने जब जीवन को त्यागा तो उनके अनुयायियों ने उनके मृत शरीर के स्थान पर पुष्प पाए, जिससे कबीर सदा-सदा के लिए अमर हो गया। इस प्रकार कबीर के जीवन को डा. सतीश कश्यप ने अपनी गायकी और संवाद अदायगी के साथ लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। गम्भीरता और विनोद के मिले-जुले संगम ने कहानी को और रोचक बनाए रखा। जहां एक ओर डा. सतीश कश्यप की अदायगी लोगों को लुभाने का कार्य कर रही थी, वहीं दूसरी स्वांग में वाद्ययंत्रों तथा गायकी से संगत दे रहे कलाकारों ने भी दम मस्त कबीरा को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग दिया। अंत में रंगकर्मी बृज शर्मा ने कलाकारों की खुले दिल से प्रशंसा की। हरियाणा कला परिषद की ओर से समस्त कलाकारों तथा मुख्याअतिथि बृज शर्मा को सम्मानित किया गया।

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