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उत्तराखंड: दिल्ली से बाहर हुए खटारा वाहनों के कारण उत्तराखंड में बढ़ रहा है प्रदूषण


सागर मलिक संपादक

उत्तराखंड में दिल्ली के पुराने वाहन भी प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। जो वाहन दिल्ली में आयु सीमा पार कर चुके होते हैं, उनको उत्तराखंड में पंजीकृत करा दिया जाता है। देहरादून में ऐसे वाहनों की संख्या सबसे ज्यादा है।

बावजूद इसके यहां से पुराने वाहनों को सड़क से बाहर करने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई जा रही है।

देहरादून स्थित आरटीओ कार्यालय में 10 लाख से ज्यादा वाहन पंजीकृत हैं। हर साल यहां औसतन 70 हजार वाहन पंजीकृत हो रहे हैं। इन रजिस्टर्ड वाहनों में पुराने वाहन भी शामिल हैं, जो शहर की आबोहवा को खराब करने का काम कर रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए कई वर्षों से पुराने वाहनों को शहरभर से बाहर करने की कवायद चल रही है।

एनजीटी भी कई बार पुराने वाहनों को हटाने के आदेश दे चुकी है। लेकिन अभी तक इसके लिए ठोस नियमावली नहीं बनाई जा सकी है। ऐसे में बाहरी राज्यों के पुराने वाहन भी देहरादून समेत सभी जिलों में रजिस्टर्ड होकर उत्तराखंड की सड़कों पर दौड़ रहे हैं।

परिवहन विभाग ने 2009 में वाहनों की आयु सीमा तय की थी। विक्रम के लिए सात साल, ऑटो के लिए 10 साल और टैक्सी-मैक्सी के लिए 12 तय की गई। पर, परिवहन कारोबारी इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गए थे। 2014 में यह कहकर आयु सीमा की बाध्यता खत्म करने के आदेश दिए गए कि परिवहन विभाग को यह तय करने का अधिकार नहीं है। इसके बाद विभाग डबल बेंच में गया, यहां 2019 में केस हार गया।

देहरादून शहर में कई विक्रम और सिटी बसें भी खटारा हो चुकीं हैं। यह वाहन दशकों से दून की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। 2023 में संभागीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) ने विक्रम वाहनों को हटाने के लिए समय तय किया था, पर विक्रम स्वामी हाईकोर्ट से स्टे ले आए। इसके बाद, परिवहन महकमा विक्रम-सिटी बस मालिकों के लिए सब्सिडी की योजना ले आया। इसके तहत पुराने वाहन को हटाकर नये वाहन की खरीद पर 50 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है, लेकिन इस योजना का लाभ लेने के लिए कोई आगे ही नहीं आ रहा है। ऐसे में पुराने वाहनों को हटाना परिवहन विभाग के साथ सरकार के लिए चुनौती बन गया है।

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