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सांस्कृतिक विविधता को जीवित रखने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका : प्रो. सोमनाथ सचदेवा

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी दूरभाष – 9416191877

अनपढ़ लोगों ने संस्कृति को बचाने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिकाः डॉ. माधव कौशिक।
आठ भाषाओं की कार्यशाला का कुलपति ने किया उद्घाटन।

कुरुक्षेत्र, 10 सितम्बर : सांस्कृतिक विविधता को जीवित रखने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। भाषा किसी भी संस्कृति का प्रतिबिम्ब है। भाषा केवल एक शब्दों का संग्रह व मेल ही नहीं बल्कि किसी भी संस्कृति को जानने का मुख्य स्रोत है। भाषा संचार और सामाजिक सामंजस्य का आधार है। अनुवाद केवल शब्दों का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भावना और विचारधारा का एक सेतु है, जो विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को आपसी सांझ के साथ जोड़ता है और लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाता है। यह उद्गार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कुवि के पंजाबी विभाग तथा साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सहयोग से 10 से 12 सितंबर तक आयोजित तीन दिवसीय बहुभाषी अनुवाद कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए। इससे पहले दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। विभागाध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया व तीन दिवसीय कार्यशाला के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला अपने प्रकार की पहली शैक्षणिक पहल है, जिसका उद्देश्य विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच संवाद और अनुवाद परंपरा को सुदृढ़ करना है।
कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि कुरुक्षेत्र हरियाणा का एकमात्र सरकारी विश्वविद्यालय है जिसे नैक द्वारा ए-प्लस-प्लस ग्रेड प्राप्त है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को इसके सभी आयामों के साथ कुवि में ही नहीं बल्कि संबंधित 295 महाविद्यालयों में लागू करने वाला देश का पहला विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय है। कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस वर्कशाप में 8 भाषाओं का अनुवाद करके विभिन्न साहित्यिक रचनाओं को मूर्त देने का कार्य किया जाएगा। आजकल हम एआई टूल द्वारा भी अनुवाद कार्य करने के कार्य में मदद ले रहे हैं। चैट जीपीटी एआइ टूल की मदद से केवल अनुवाद किया जा सकता है वो सटीक है कि नही या वह भाव उस अनुवाद में है जो हमें चाहिए, यह कार्य सही तरीके व भावपूर्ण तरीके से केवल अनुवादक द्वारा किया जाता है।
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के प्रधान डॉ. माधव कौशिक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि अनपढ़ लोगों ने संस्कृति को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनुवादक का कार्य दुनिया का सबसे मुश्किल कार्य है। अनुवादक राष्ट्रीय साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का कार्य करता है। अनुवादकों ने उस पीड़ा का भी अनुवाद किया है जो आंखो में दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि शब्दकोशो के हजारों शब्द लेकर दर्द का अनुवाद कोई क्या करेगा। पहले वाचिक परम्परा में अनुवाद होता था। हमारे देश की सभ्यता को बनाने में निरक्षरों का ज्यादा योगदान है। भारत की सबसे बड़ी ताकत इसकी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता है। अनुवाद के माध्यम से ही ये विभिन्न भाषाओं के साहित्य एक-दूसरे तक पहुँच सकते हैं और इससे राष्ट्रीय एकता का संदर्भ और मजबूत होगा। पंचतंत्र की कहानियाँ अनुवादित होने के बाद हर भाषा में उपलब्ध हैं। अनुवादकों ने ही दुनिया का निर्माण किया है। अनुवादक राष्ट्रीय साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का कार्य करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कुछ लाभ हैं, वहीं कई हानियाँ भी हैं, छात्रों और शोधार्थियों को इसका सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
मुख्य वक्ता पंजाबी सलाहकार बोर्ड साहित्य अकादमी दिल्ली के संयोजक प्रो. रवेल सिंह ने कहा कि भाषा केवल शब्दों की नहीं होती, बल्कि इसके पीछे एक विशाल सांस्कृतिक विरासत छिपी होती है, जिसे अनुवादक संवेदनशीलता के साथ पाठकों तक पहुंचाना होता है। हम 24 भाषाओं के लिए काम करते हैं। इस कार्यशाला में उत्तर भारत में बोली जाने वाली आठ भाषाओं (डोगरी, अंग्रेजी, हिंदी, कश्मीरी, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत और उर्दू) को मुख्य केंद्र बनाया गया है।
इस कार्यक्रम में विशेष रूप आए प्रख्यात कथाकार केसरा राम ने कहा कि अनुवाद के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। अनुवाद हमें संस्कृति के माध्यम से जोड़ता है।
कुलसचिव डॉ. वीरेन्द्र पाल ने कहा कि इस तरह की बहुभाषी कार्यशालाएँ विश्वविद्यालय के शैक्षणिक वातावरण को समृद्ध बनाती हैं और विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को रचनात्मकता के नए आयाम खोलने का अवसर प्रदान करती हैं। मंच का संचालन डॉ. लता खेड़ा ने किया। अंत में सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. देवेन्द्र ने किया।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. वीरेन्द्र पाल, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. एआर चौधरी, प्रो. प्रीति जैन, प्रो. पुष्पा रानी, प्रो. विनोद कुमार, प्रो. सुशीला चौहान, प्रो. संजीव शर्मा, प्रो. कुलदीप सिंह, प्रो. सुनीता सिरोहा, प्रो. नीरा राघव, डॉ. धर्मवीर, लोक सम्पर्क विभाग के निदेशक डॉ. विकास सभरवाल, डॉ. अंकेश्वर प्रकाश, प्रो. महासिंह पूनिया, उप-निदेशक डॉ. जिम्मी शर्मा, डॉ. पवन कुमार, डॉ. गुरप्रीत सिंह, डॉ. देवेन्द्र बीबीपुरिया, डॉ. विजयश्री, डॉ. तेलूराम, डॉ. रामचन्द्र डॉ. मनजीत सहित उत्तर भारत की आठ भाषाओं (डोगरी, अंग्रेजी, हिंदी, कश्मीरी, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत और उर्दू) के अनुवादकों, विद्वानों, शोधार्थियों व विद्यार्थियों ने भाग लिया।

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