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सनातन संस्कृति के सिद्धांतों से ही विश्व में शांति संभव- श्री ज्ञान चन्द्र द्विवेदी

सनातन संस्कृति के सिद्धांतों से ही विश्व में शांति संभव। श्री ज्ञान चन्द्र दृवेदी

जय शर्मा संवाददाता

शरीर के स्तर पर तीतीक्षा अर्थात् सहनशीलता मन के स्तर पर प्रतीक्षा तब जाकर भगवान श्री हरि की दिदृक्षा अर्थात् दर्शन की इच्छा पूरी होगी।
भगवान की कथा तृष्णा को समाप्त कर अनुपम भक्ति को प्रदान करती है।भगवान का नाम दिव्य है।
कृष्ण का अर्थ है परम आनंद।
हम सभी लोग आनंद की खोज में हैं पर हम यह नहीं जानते कि सच्चा आनंद किस प्रकार खोजा जा सकता है । यह बातें आयोजित श्रीविष्णु पुराण ज्ञान यज्ञ के दिव्य आयोजन में कथा वाचक आचार्य ज्ञान चन्द्र द्विवेदी ने तृतीय दिवस की कथा में कही।
श्री द्विवेदी ने कहा कि जीवन के प्रति भौतिकतावादी दृष्टिकोण रखकर हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने में हर पग पर निराशा का सामना करते हैं। क्योंकि जिस वास्तविक स्तर पर पहुंचकर वास्तविक आनंद प्राप्त होता है उसकी हमें जानकारी ही नहीं है। दिव्य आनंद प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें अपने जीवन दर्शन को समझना होगा और उस जीवन दर्शन को समझने का सबसे सरल माध्यम भगवान की कथा होती है।
ज्ञान और भक्ति दोनों ही अंतरंग भाव है ।इसलिए वह अंतरंग में रहने वाले परमात्मा का साक्षात स्पर्श करते हैं।
इंद्रियों से परे मन मन से परे बुद्धि बुद्धि से परे परमात्मा है। ऐसा शास्त्रों का निर्णय है ।जो साधन जितना अंतरंग होगा उतना ही भगवान के सन्निकट होगा।
भगवान तथा भगवान की कथा एवं भक्तों में एक सहज गुण है, वह यह कि इनकी शरणागति कभी विफल नहीं होती है।
कथा में जड़भरत जी का चरित्र एवं श्री गंगा जी के माहात्म्य को श्रद्धालुओं ने बड़े प्रेम से श्रवण किया।

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