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दिव्या ज्योति जागृती संस्थान की ओर से फिरोजपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का किया गया आयोजन
फिरोजपुर 29 अक्टूबर {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से फिरोजपुर आश्रम में सप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें अपने प्रवचनों के माध्यम से साध्वी किरन भारती जी ने बताया की मानव इस सृष्टि का सबसे श्रेष्ठ हम प्राणी है। इसलिए उसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह उसके अनुरूप श्रेष्ठतम कार्य व्यवहार करें ।अपने जीवन को सब प्रकार से स्वस्थ बनाकर उसे संपूर्णता प्रदान करें ।कठोपनिषद के अनुसार मनुष्य का जीवन मात्र उसके शरीर से संचालित नहीं है यह शरीर तो एक रथ के समान है इसमें आत्मा रूपी रथ भी विद्यमान है जिसका सारथी बुद्धि एवं मन लगाम है ।अतः स्वस्थ जीवन केवल स्वस्थ शरीर पर कैसे निर्भर हो सकता है। संपूर्ण स्वास्थ्य तो तन मन और आत्मा तीनों के समृद्ध विकास पर आधारित है। उदाहरण तक एक फल पूर्णता विकसित कब कहलाता है ।तब जब उसके बाहरी आवरण के साथ-साथ भीतर से भी पककर पूर्णता रसीला हो जाए और बीज भी तुरंत विकसित हो जाए ।किसी भी एक भाग की अपरिपक्वता की स्थिति में वह फल खाने योग्य नहीं बनेगा। यदि बाहरी छिलका रुपी सुरक्षा कवच न पनपे तो भीतर के मुख्य फल की सुरक्षा कैसे हो और यदि मात्र बाहरी आवरण तैयार हो पर भीतर कुछ भी ना रहे तब भी इस फल का अस्तित्व नहीं है ।इन दोनों भागों के साथ ही बीज तत्व का उन्नत होना सबसे आवश्यक है क्योंकि बीज ही फल को ठोस आधार देता है।
इस आधार के बिना फल अपने स्वाभाविक आकार को ही प्राप्त नहीं कर सकता ।आज मानव जीवन अपूर्ण विकास के कारण ही अनेकों समस्याओं का ग्राम बन बैठा है । वह मात्र छिलके जैसे शरीर को तो सजाने में जुटा है परंतु बीज तत्व आत्मा को स्वार्थ भूल बैठा है । सत्य स्वरूप महापुरुषों ने हमें सदा इस आत्म पर केंद्रित हो ,इसे विकसित और जागृत करने का आदेश दिया है ।अतः ब्रह्म ज्ञान द्वारा दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर अपने भीतर ज्योति स्वरूप परमात्मा का साक्षात्कार कर लेना ही जीवन की मूल्य लक्ष्य है। इस पथ के पथिक आत्मा ही पूर्ण रूप से जागृत होती है ऐसा ही जागृति बुद्धि रूपी सारथी को सही दिशा निर्देश दे पाने में सक्षम है। और ऐसे ही नियंत्रण बुद्धि मन रुपी लगाम को कम कर इंद्रियों रूपी घोड़े को भटकने से बचा सकती है।