हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र, 17 जनवरी :- मां भगवती मां पीताबंरा देवी मंदिर शीला नगर में चल रही भागवत कथा सोमवार को संपन्न हो गई। कथा के समापन पर हवन यज्ञ और भंडारे का आयोजन किया गया। भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ में आहुति डाली और फिर प्रसाद ग्रहण कर पुण्य कमाया। भागवत कथा का आयोजन केडीएस पिपल केयर की ओर से करवाया गया था। मुख्य यजमान के रूप में नरेश शास्त्री, कृष्ण चंद्र शास्त्री, रमेश शास्त्री, अमित मोदगिल, आचार्य आर्यमन कौशिक, राजेश वत्स, दीप शर्मा आदि ने यज्ञ में आहुति डाली। कथा व्यास आर्यमन कौशिक ने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुगुर्णों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है।
कथावाचक आर्यमन कौशिक ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है। कथा समापन के दिन सोमवार को विधिविधान से पूजा करवाई। दोपहर तक हवन और भंडारा कराया गया। पंडित राजेश वत्स ने बताया कि पूज्य दादा गुरुदेव जी की 24वीं पुण्य तिथि के अवसर पर 9 से 15 फरवरी को भी श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जाएगा। हवन यज्ञ में आहुति डालते यजमान।