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राम के विरह में दशरथ ने छोड़े प्राण, भरत ने सिंहासन पर रखी खड़ाऊं

राम के विरह में दशरथ ने छोड़े प्राण, भरत ने सिंहासन पर रखी खड़ाऊं

पवन कालरा ( संवाददाता)

बरेली : ब्रह्मपुरी 165 वीं रामलीला मंचन में आज गुरु व्यास मुनेश्वर जी महाराज ने वर्णन किया कि जब सुमंत्र राम लक्ष्मण सीता जी को छोडकर अयोध्या पहुंचे तो राजा दशरथ उन्हें देखते ही भाव विह्वल हो गए और सुमंत्र को गले लगा कर बोले, सुमंत्र! कहो, राम कहाँ हैं ?
देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु।
सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु।।
तब सुमंत्र ने सारा वृतांत कह सुनाया। सारथी सुमंत्र के वचन सुनते ही राजा पृथ्वी पर गिर पड़े, उनके हृदय में भयानक जलन होने लगी। वे तड़पने लगे, उनका मन व्याकुल हो गया और वह कहने लगे कि श्री राम के बिना जीने की आशा को धिक्कार है। मैं उस शरीर को रखकर क्या करूँगा। फिर हे राम कहकर राजा दशरथ अपने राम के विरह में शरीर त्याग कर सुरलोक को सिधार गए। तीनों रानियां, दास-दासीगण व्याकुल होकर विलाप करने लगे। उधर ननिहाल से अयोध्या पहुँचने पर भरत को अयोध्या असामान्य लगी। वहाँ का माहौल उन्हें बदला-बदला लगा। उन्हें अनिष्ट की आशंका होने लगी। तब वो माता कौशल्या के पास गये तो आहत कौशल्या ने भरत से कहा कि तुम्हारे पिता का निधन हो गया है। अब अयोध्या का राज तुम्हारा है, लेकिन कैकेयी द्वारा राज लेने का अपनाया गया तरीका अनुचित था। राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। राजा दशरथ की मृत्यु के बाद अयोध्या का सिंहासन खाली देखकर महर्षि वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को बुलाकर राजकाज संभालने के लिए कहा। भरत ने मुनि का अनुरोध अस्वीकार करते हुए राजगद्दी पर राम का अधिकार बताया। राज्य का कार्य भार संभालना भी भरत पाप समझते थे। उन्होंने वन जाने का निश्चय किया ताकि राम को अयोध्या वापस ला सकें। उधर जब एक दिन राम सीता चित्रकूट में प्राकृतिक छटा का आनन्द ले रहे थे तो सहसा उन्हें चतुरंगिणी सेना का कोलाहल सुनाई पड़ा तब लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि भरत अयोध्या की सेना ले इधर ही आ रहे हैं, पर्वत के निकट अपनी सेना को छोड़कर भरत-शत्रुघ्न राम की कुटिया की ओर चले। उन्होंने देखा, यज्ञवेदी के पास मृगछाला पर जटाधारी राम वक्कल धारण किये बैठे हैं। वे दौड़कर रोते हुये राम के पास पहुँचे। उनके मुख से केवल हे आर्य शब्द निकल सका और वे राम के चरणों में गिर पड़े। शत्रुघ्न की भी यही दशा थी। राम ने दोनों भाइयों को पृथ्वी से उठाकर हृदय से लगा लिया और पूछा, भैया! पिताजी तथा माताएँ कुशल से हैं न? कुलगुरु वशिष्ठ कैसे हैं? और तुमने तपस्वियों जैसा वक्कल क्यों धारण कर रखा है? रामचन्द्र के वचन सुनकर अश्रुपूरित भरत बोले, भैया! हमारे परम तेजस्वी धर्मपरायण पिता स्वर्ग सिधार गये। मेरी दुष्टा माता ने जो पाप किया है, उसके कारण मुझ पर भारी कलंक लगा है और मैं किसी को अपना मुख नहीं दिखा सकता। अब मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप अयोध्या का राज्य सँभाल कर मेरा उद्धार कीजिये। सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल, तीनों माताएँ, गुरु वसिष्ठ आदि सब यही प्रार्थना लेकर आपके पासे आये हैं। मैं आपका छोटा भाई हूँ, पुत्र के समान हूँ, मेरी रक्षा करें। इतना कहकर भरत रोते हुये फिर राम के चरणों पर गिर गये और बार-बार अयोध्या लौटने के लिये अनुनय विनय करने लगे। तब राम ने कहा मेरे लिये माता कैकेयी और माता कौशल्या दोनों ही समान रूप से सम्माननीय हैं। तुम्हें ज्ञात है कि मैं पिताजी की आज्ञा का उल्लंघन कदापि नहीं कर सकता। पिताजी ने स्वयं ही तुम्हें राज्य प्रदान किया है, अतः उसे ग्रहण करना तुम्हारा कर्तव्य है। जब राम किसी भी प्रकार से अयोध्या लौटने के लिये राजी नहीं हुए तो भरत ने रोते हुये कहा, भैया! मैं जानता हूँ कि आपकी प्रतिज्ञा अटल है, किन्तु यह भी सत्य है कि अयोध्या का राज्य भी आप ही का है। अतः आप अपनी चरण पादुकाएँ मुझे प्रदान करें। मैं इन्हें अयोध्या के राजसिंहासन पर प्रतिष्ठित करूँगा और स्वयं, वक्कल धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए, नगर के बाहर रहकर आपके सेवक के रूप में राजकाज चलाउँगा। चौदह वर्ष पूर्ण होते ही यदि आप अयोध्या नहीं पहुँचे तो मैं स्वयं को अग्नि में भस्म कर दूँगा। यही मेरी प्रतिज्ञा है। अयोध्या पहुँच जाने पर भरत ने गुरु वशिष्ठ से कहा, गुरुदेव! आपको तो ज्ञात ही हैं कि अयोध्या के वास्तविक नरेश राम हैं। उनकी अनुपस्थिति में उनकी चरण पादुकाएँ सिंहासन की शोभा बढ़ायेंगी। मैं नगर से दूर नन्दिग्राम में पर्णकुटी बनाकर निवास करूँगा और वहीं से राजकाज का संचालन करूँगा। फिर वे नन्दिग्राम से ही राम के प्रतिनिधि के रूप में राज्य का कार्य संपादन करने लगे।
प्रवक्ता विशाल मेहरोत्रा ने बताया कि कल अगस्त्य मुनि से भेंट और खर दूषण वध की लीला होगी।
पदाधिकारियों में संरक्षक सर्वेश रस्तोगी, अध्यक्ष राजू मिश्रा, महामंत्री सुनील रस्तोगी व दिनेश दद्दा, कोषाध्यक्ष राज कुमार गुप्ता, लीला प्रभारी अखिलेश अग्रवाल व विवेक शर्मा, सत्येंद्र पांडेय, नीरज रस्तोगी, बॉबी रस्तोगी, दीपेन्द्र वर्मा, अमित वर्मा, लवलीन कपूर, कमल टण्डन, धीरज दीक्षित, महिवाल रस्तोगी, सोनू पाठक, बंटी रस्तोगी आदि शामिल रहे।

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