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दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा मंदिर श्री नीलकंठ सेवा सभा फिरोजपुर तीन दिवसीय कथा के दूसरे दिवस में भगवान शिव के अद्वितीय रूप से जुड़े रहस्यों को उद्धाटित किया

दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा मंदिर श्री नीलकंठ सेवा सभा फिरोजपुर तीन दिवसीय कथा के दूसरे दिवस में भगवान शिव के अद्वितीय रूप से जुड़े रहस्यों को उद्धाटित किया

(पंजाब) फिरोजपुर 27 अप्रैल [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]=

जन-मानस को आध्यात्मिकता के प्रति जागृत करने के उद्देश्य से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा चुंगी खाना रोड मंदिर श्री नीलकंठ सेवा सभा फिरोजपुर में आयोजित तीन दिवसीय कथा के आज दूसरे दिवस में भगवान शिव के अद्वितीय रूप से जुड़े रहस्यों को उद्घाटित किया गया। कथा के द्वितीय दिवस में भी प्रभु की पावन ज्योति विधिवत प्रज्वलित की गई जिसमे डॉ परमिंदर सिकरी अध्यक्ष श्री राधा कृष्ण मंदिर, श्री परमजीत अबरोल अध्यक्ष सनातन धर्म युवक सभा मंदिर, श्री अशोक बहल सेवामुक्त रेड क्रॉस, श्री दविंदर बजाज, भूतपूर्व अध्यक्ष बीजेपी फ़िरोज़पुर , श्री मोहित ढल्ल अध्यक्ष सराफा यूनियन फ़िरोज़पुर, श्री इन्दर गुप्ता ब्लॉक प्रधान बीजेपी फ़िरोज़पुर छावनी, शामील हुए। विलक्षण कथा का रसपान करने हेतु क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उमड़े। तांडव स्तोत्रम और डमरू की भावपूर्ण धुनो में पिरोये भक्ति भावों से सराबोर भजनों ने पंडाल में दिव्यता का संचार किया।
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी दीपिका भारती जी ने समझाया कि भगवान शिव का साकार एवं निराकार रूप- शिवलिंग, दोनों ही आध्यात्मिक जगत के प्रतीकात्मक चिन्ह हैं। शिवलिंग प्रतीक है मानव के अन्तर जगत के आकाश का जहाँ परब्रह्म का वास है। भगवान शिव का साकार रूप संकेतक है इस तथ्य का कि बाह्य जगत अंतर जगत का प्रतिबिंब होता है। यह त्याग, वैराग्य, ज्ञान-प्रकाश आदि का प्रतीक है।
सतगुरु रूप में भगवान शिव द्वारा देवी पार्वती को दिए गए प्रवचन गुरु गीता के माध्यम से समस्त मानव समाज के लिए प्राप्य हैं। जीवन में गुरु की महत्ता को दर्शाते हुए कबीर दास जी लिखते हैं- गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष। गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष।। अर्थात गुरु के बिना ब्रह्मज्ञान एवं मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। अतः बिना गुरु के सत्य का दर्शन व शंकाओं का निवारण भी नहीं हो सकता। साध्वी जी ने समझाया कि पूर्ण सतगुरु शिष्य के जीवन में शिव रूप में कार्य करते हैं। वह उसके आंतरिक व बाह्य आवरण में छुपे दोषों का नाश करते हैं। तत्पश्चात शिष्य को उच्च चेतना की ज्ञान-प्रकाशित सृजन यात्रा पर अग्रसर कर देते हैं। भगवान शिव का तृतीय नेत्र मानव में स्थित आध्यात्मिक सूक्ष्म द्वार का प्रतीक है, जिसे गुरु कृपा द्वारा शिष्य के आंतरिक जगत में खोलते हैं। साध्वी जी ने उपस्थित श्रोतागणों को पूर्ण गुरु की शरण में जीवन के एकमात्र लक्ष्य को प्राप्त करने एवं अपनी आध्यात्मिक यात्रा का शुभारंभ करने के लिए प्रेरित किया।
साध्वी जी ने भगवान शिव के अद्भुत श्रंगार का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान भोलेनाथ के शरीर पर जो भस्म रमई हुई है, अगर उसे बाहरी स्थूल दृष्टि से देखे तो वह कीट पतंगे व शीत से बचने के लिए है लेकिन अगर सूक्ष्म दृष्टि से देखे तो यह संसार की माया से बचने का प्रतीक है।
तन पर भस्म राम कर भगवान भोलेनाथ यह समझना चाहते हैं कि इस तन का अभिमान मत करना यह तन परमात्मा को मिलने का एक साधन है। भगवान शिव के सिर पर जो जटाएं शोभित है वह वायु का प्रतीक हैं, हमारा मन भी वायु के सामान इधर उधर घूमता रहता है, भगवान शिव के सिर पर शोभित जटाएं मन पर अंकुश लगाने का संदेश देती है। भगवान के गले में जो सर्प की माला है वह हमें ईश्वर का ध्यान करते हुए मृत्यु पर विजय पाने का संदेश देते हैं। भगवान भोलेनाथ के इस अद्भुत श्रंगार में अनेका अनेक आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं जो हमें आध्यात्मिक उन्नति की और अगरसर होने का संदेश देते हैं।
साध्वी करमाली भारती जी एवं साध्वी जसप्रीत भारती जी ने पूर्ण विश्वास एवं श्रद्धा से इस तथ्य को उजागर किया कि श्री आशुतोष महाराज जी, समय के पूर्ण सतगुरु, किसी भी जिज्ञासु को आध्यात्मिक रूप से जागृत करने में सक्षम हैं। आत्मिक स्रोत से जुड़ने के पश्चात शिष्य का जीवन शांति व आनंद से भर जाता है। साथ ही साथ साध्वी रमन भारती जी एवं बहन नैंसी जी ने भगवान शिव की महिमा का गुणगान भजनों के माध्यम से किया।

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