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भारतीय ज्ञान परम्परा भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं : प्रो. तेजेन्द्र

भारतीय ज्ञान परम्परा भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं : प्रो. तेजेन्द्र शर्मा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

रिफ्रेशर कोर्स का पांचवा दिन।

कुरुक्षेत्र, 12 मई : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मालवीय मिशन शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी) एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के तत्वावधान में दो-सप्ताह के ऑनलाइन पुनश्चर्या कार्यक्रम के पाँचवा दिन प्रथम सत्र में प्रो. तेजेन्द्र शर्मा ने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में आचार संहिता’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान-परम्परा केवल भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रही है, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। इस मौके पर एक प्रतिभागी छात्र ने गुरु की महिमा को लेकर एक श्लोक प्रो. तेजेन्द्र शर्मा के नाम किया जिसमें गुरु को सदैव विद्यार्थी हित तथा शिक्षण कार्य में लगनशील तथा गुरु परम्परा के अनुसार मर्मज्ञ बताया गया है।
द्वितीय सत्र में डॉ. मनमोहन सिंह ने साहित्यिक अनुवाद की जटिलताओं तथा उसमें निहित रचनात्मक मूल्यों पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र में प्रो. कृष्णा देवी ने बताया कि प्राचीन योग परंपराएँ आज भी मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। चतुर्थ सत्र में प्रो. वीरेंद्र कुमार ने कहा कि भारतीय दर्शन में जीवन-मूल्य केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन की आधारशिला हैं।यह रिफ्रेशर कोर्स डॉ. कुलदीप सिंह (समन्वयक) एवं डॉ. लता खेड़ा (सह-समन्वयिका) के सक्षम मार्गदर्शन में संचालित हो रहा है, जिनके नेतृत्व में कार्यक्रम निरंतर अकादमिक उत्कृष्टता एवं अनुशासन के साथ आगे बढ़ रहा है। विभिन्न सत्रों में डॉ. किरन गर्ग, डॉ. चंद्रभान एल. सुरवड़े डॉ. नीलम व डॉ. राकेश कुमार ने अहम् भूमिका निभाई।

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