हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र, 15 जनवरी : केडीएस पिपल केयर की ओर से मां भगवती मां पीताबंरा देवी मंदिर शीला नगर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में शनिवार को कथा व्यास आर्यमन कौशिक महाराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग सुनाया। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। रुक्मणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान कथा मंडप में विवाह का प्रसंग आते ही चारों तरफ से श्रीकृष्ण-रुक्मणी पर जमकर फूलों की बरसात हुई। कथा के मुख्य यजमान मुख्य यजमान सत्यनारायण शर्मा, सावित्री देवी, राजेश वत्स, उदयसागर, अभय शर्मा व देव शर्मा ने दीप प्रज्जवलित किया। पंडित राजेश वत्स ने बताया कि कथा के समापन पर 17 जनवरी को विद्यापीठ में हवन एवं भंडारे का आयोजन किया जाएगा। कथावाचक आर्यमन कौशिक ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। प्रसंग में आर्यमन कौशिक ने कहा कि रुक्मणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थी। रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया। रुक्मणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह चेदिनरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुक्मणी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक ब्राह्मण संदेशवाहक द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया। तब श्रीकृष्ण विदर्भ देश की नगरी कुंडीनपुर पहुंचे और वहां बारात लेकर आए शिशुपाल व उसके मित्र राजाओं शाल्व, जरासंध, दंतवक्त्र, विदु रथ और पौंडरक को युद्ध में परास्त करके रुक्मणी का उनकी इच्छा से हरण कर लाए। वे द्वारिकापुरी आ ही रहे थे कि उनका मार्ग रुक्मी ने रोक लिया और कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। तब युद्ध में श्रीकृष्ण व बलराम ने रुक्मी को पराजित करके दंडित किया। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपने संबंधियों के समक्ष रुक्मणी से विवाह किया।कथा सुनाते कथा व्यास आर्यमन कौशिक।