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पुराण भारतीय जीवन साहित्य के रत्न निर्मित अमूल्य श्रृंगार हैं- श्री ज्ञानचंद्र दृवेदी

और हैं अतीत को वर्तमान से जोड़ने वाली स्वर्णमयी श्रृंखला।
श्री विष्णु पुराण में वैष्णव धर्म का विस्तार से वर्णन है।
कथाक्रम में मैत्रेययमुनि ने महर्षि पराशर से लक्ष्मी जी के उत्पत्ति के बारे में पूछा तब महर्षि पराशर ने समुद्र मंथन की कथा बहुत विस्तार से सुना करके लक्ष्मी जी के उत्पत्ति का वर्णन सुनाया, जो भगवान नारायण का वरण करती हैं। इसके अनंतर भक्त राज ध्रुव जी का चरित्र राजा वेन, राजा पृथु तथा श्री प्रहलाद जी के चरित्र को विस्तार पूर्वक सुनाया गया। प्रहलाद जी अपनी भक्ति से अपना कल्याण तथा अपने उपदेश एवं करुणा से अपने पिता के साथ समस्त जीवों का कल्याण करते हैं।
श्री प्रहलाद जी कहते हैं हे प्रभु जो दुर्जन है वह सज्जन हो जाएं और जो सज्जन हो गए हैं वह शांति का अनुभव करें और जो शांति का अनुभव कर रहे हैं वे बंधन मुक्त हो जाएं और जो बंधन मुक्त हो जाएं वे औरों को बंधन मुक्त करें।
जीवन में अनुकूलता प्रतिकूलता सदा लगी रहती है पर मनुष्य को बिना विचलित हुए भगवान की भक्ति करनी चाहिए यही प्रहलाद चरित्र का सारांश है
कथा के दूसरे दिन भक्तों ने भगवान के दिव्य चरित्रों को सुना। भगवान की कथा भक्तों के हृदय में ज्ञान वैराग्य एवं भक्ति का संचार करती है भगवान की कथा भगवान से भी ज्यादा उदार है इसीलिए तो इसको सुनने वाले पापी भी मुक्त होकर के भगवान के धाम चले जाते हैं

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