स्वामी विवेकानंद के धर्म के केंद्र में मनुष्यता की निस्वार्थ सेवा है : डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र
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विवेकानंद जयंती, राष्ट्रीय युवा दिवस एवं मातृभूमि सेवा मिशन के 22 वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम के द्वितीय दिवस सेवा संवाद कार्यक्रम सम्पन्न।
कुरुक्षेत्र, 13 जनवरी : स्वामी विवेकानंद विश्व में भारतीय संस्कृति के गौरव को प्रतिष्ठा दिलाने वाले संतों में अग्रगण्य हैं। उनका जीवन धर्मज्ञान का जीवन स्वरूप है। स्वामी विवेकानंद महान ज्ञानी, ओजस्वी वक्ता एवं पूर्ण संत थे। योग के अभ्यासी, वेदांत के ज्ञाता तथा ईश्वर के अन्नय भक्त थे। इन सबसे बढ़कर वे सेवा धर्म के मर्मज्ञ संत थे, जिनके उपदेश एवं आचरण में कहीं अंतर नहीं था। यह विचार स्वामी विवेकानंद जयंती, राष्ट्रीय युवा दिवस एवं मातृभूमि सेवा मिशन के 22वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम के द्वितीय दिवस कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यालय परिसर ब्रम्हसरोवर लग मिशन द्वारा आयोजित सेवा संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ ब्रम्हचारियों ने वैदिक मंत्रोच्चारण से किया। इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा नारायण सेवा भी की गई।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा सेवा की भावना वास्तव में व्यक्त के स्वभाव में ओर संस्कारों के परिणामस्वरूप अंत:करण में होती हे। सेवा किसी पर थोपी नहीं जा सकती। निस्वार्थ भाव से जो किसी की भी सहायता करने को तत्पर हो जाता है, वही सेवा कर सकता है। सेवा का मूल है संवेदना एवं सहानुभूति। दूसरों की परिस्थिति देखकर उनके द्वारा सहे जाने वाले कष्टों का चिंतन स्वयं को उस परिस्थिति में मानकर करना तथा उससे तादात्मय सम्बन्ध कर लेना ही सहानुभूति है। सहानुभूति कर्म रूप में परिणति ही सेवा है। स्वामी विवेकानंद के धर्म के केंद्र में मनुष्यता की निस्वार्थ सेवा है। स्वामी विवेकानंद का जीवन सेवावृत्ति के अनेक उदाहरणों एवं प्रेणादायी प्रसंगो से परिपूर्ण है। मातृभूमि सेवा मिशन विगत। 21 वर्ष से स्वामी विवेकानंद के सेवा दर्शन को आत्मसात कर विभिन्न सेवा प्रकल्पों के माध्यम से सेवरत है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा हर मानव भगवान का ही स्वरूप है। हमें भूलना नहीं हैँ कि अज्ञानी, दरिद्र, निम्न कही जाने वाली जातियों के लोग सब तुम्हारे ही भाई हैं। उनमें भी तुम्हारे ही जैसा रक्त-मांस है। हे वीरो! साहस का अवलंबन करो। गर्व से कहो मै हिंदू हूँ। प्रत्येक भारतीय मेरा सगा भाई हे। चिल्लाकर कहो कि प्रत्येक भारतवासी, चाहे वह अज्ञानी, दरिद्र हो, ब्राह्मण हो या चांडाल हो, सभी मेरे सहोदर हैं, मेरे प्राण हैं। हर परिस्थिति में, मैं इनकी सेवा के लिए तत्पर तथा संकल्पित हूँ।स्वामी विवेकानंद ने अनेक स्थानों पर सेवा का आदर्श महावीर हनुमान जी को बताते हुए कहा हनुमान जी ने अत्यंत विन्रम भाव से सेवा की। सेवा के बदले कभी पुरस्कार या सम्मान की अपेक्षा नहीं की। हर प्रकार की सेवा हनुमान जी ने की। आज देश के सभी युवकों को स्वामी विवेकानंद जी के सेवा दर्शन से प्रेरणा लेकर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी जीव मात्र की सेवा निःस्वार्थ भाव से करते रहेंगे और भारत को सब प्रकार से सशक्त बनने भी संकल्प लेना चाहिए। कार्यक्रम में आभार ज्ञापन आचार्य नरेश कौशिक एवं संचालन धर्मपाल सैनी ने किया। कार्यक्रम में पाठशाला के ब्रम्हचारी, विद्यार्थी एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन लोकमंगल के निमित्त प्रार्थना से हुआ।