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सेवा ही वैद्य का धर्म, समाज का पथ प्रदर्शक बने चिकित्सक : कुलपति प्रो. धीमान

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

चिकित्सक भी इंसान हैं, उनके स्वास्थ्य का ध्यान जरूरी : प्रो.ब्रिजेंद्र सिंह तोमर।
श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में मनाया चिकित्सक दिवस।

कुरुक्षेत्र,1 जुलाई : श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान (आयुर्वेदिक अस्पताल) में मंगलवार को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान और कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर ने चिकित्सकों की भूमिका को राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर तनिष्क से फ्लोर मैनेजर अनिल वर्मा,अंकुर शर्मा व निखिल कुमार आयुष विश्वविद्यालय में चिकित्सक दिवस सेलिब्रेशन करने पहुंचे। कार्यक्रम में कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर, चिकित्सा अधीक्षक प्रो. वैद्य राजेंद्र सिंह चौधरी व तनिष्क की टीम ने वैद्यों को सम्मानित किया। इस मौके पर वैद्य राजामणि भी उपस्थित रहे।
इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि समाज को यह समझना होगा कि जो चिकित्सक दिन-रात दूसरों के स्वास्थ्य की चिंता करते हैं, उनके भीतर भी संवेदनाएं, थकान और संघर्ष होते हैं। एक चिकित्सक का कार्य कभी सिर्फ दवा देना नहीं रहा। वह संवेदनशीलता,निष्ठा और सेवा भाव का प्रतीक होता है। जब आयुष पद्धति के वैद्य वैज्ञानिक सोच, नैतिक व्यवहार और जनहित के दृष्टिकोण से काम करते हैं,तब वे केवल शरीर नहीं, बल्कि पूरे समाज को स्वस्थ करते हैं।
इस अवसर पर चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजेंद्र चौधरी ने कहा कि चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया गया है, क्योंकि भगवान जन्म देता है, लेकिन डॉक्टर जान बचा रोगी को नया जीवन देते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों को ऐसा प्रशिक्षण दे रहा है जिससे वे भविष्य के उत्कृष्ट चिकित्सक और संवेदनशील नागरिक बन सकें।
हमारा स्वास्थ्य,हमारी जिम्मेदारी : प्रो.धीमान।
आयुष विवि के कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि चिकित्सक केवल रोगों का उपचार करने वाले नहीं, बल्कि समाज में स्वास्थ्य,संयम और संतुलन का संदेश देने वाले मार्गदर्शक हैं। हमारा स्वास्थ्य, हमारी जिम्मेदारी है,इसलिए सभी को अपनी सेहत के प्रति सजग होना चाहिए और योग अपनाने के साथ-साथ अपनी जीवन शैली में सुधार करके हम स्वस्थ रह सकते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति जीवन के हर पहलू से जुड़ी है,इसलिए एक आयुर्वेदाचार्य को केवल औषधि तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि समाज में आहार और व्यवहार का मार्गदर्शक भी बनना चाहिए।

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